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की महिमा को नहीं जाना, वे परमात्मा की इस विराट महिमा से कैसे परिचित होंगे।
थोड़ा इस छोटे –से भीतर के दीये से परिचित हो लो, तो तुम महासूर्यों के राज से परिचित हो गये। क्योंकि प्रकाश छोटा हो कि बड़ा, उसका नियम एक है। छोटे-से दीये में भी जो प्रकाश जलता है, वह महासूर्यों के प्रकाश से भिन्न नहीं है। बिलकुल एक है, वही है। पर दीये से तो थोड़ी दोस्ती बना लो। फिर सुर्यों से दोस्ती बना लेना। अभी तो घर में दीया रखा है और तुम अंधेरे में टटोल रहे हो, दूसरों के घर के सामने धक्के खा रहे हो।
'कहां काम है? कहां अर्थ है? कहां द्वैत, कहां अद्वैत?'
इसे थोड़ा समझना। आदमी में काम की वासना पैदा होती, क्योंकि उसे स्व-रस नहीं मिला। इसलिए पर-रस का भाव पैदा होता है। और आदमी में अर्थ की वासना पैदा होती है, कि धन हो, पद हो, प्रतिष्ठा हो, क्योंकि भीतर उसे हीनता को बोध होता है। मनस्विद उससे राजी हैं।
मनोवैशानिक कहते हैं कि जो लोग हीनता की ग्रंथि, इनफीरिआरिटी काप्लेक्स से पीड़ित हैं, वही लोग धन के पीछे, पद के पीछे दीवाने होते हैं। ऐसा तो राजनीतिज्ञ तुम पा ही नहीं सकते जो हीनता की ग्रंथि से पीड़ित न हो। नहीं तो कौन चिंता करेगा कुर्सियों पर चढ़ने की ! और इतनी मार-कुटौवल के बाद! सौ सौ जूते खाएं तमाशा घुसकर देखें। कुछ भी हो जाए, कितने ही जूते पडे, तमाशा उन्हें घुसकर ही देखना है। चाहे तमाशा वहां कुछ हो भी नहीं । चाहे तमाशा यही हो जो उनको जूते पड़ रहे हैं, इसकी ही भीड़ लगी हो । मगर कहीं न कहीं पद पर होना है। धन की ढेरी पर बैठना है। क्यों? भीतर तो कोई जरा-सा भी महिमा का बोध नहीं होता। शायद बाहर से थोडी अकड़ जुटा लें, धन के सहारे थोड़ी घोषणा कर सकें कि मैं भी कुछ हूं।
महावीर और बुद्ध अगर राजसिंहासनों से उतर गये तो तुम गलत मत समझ लेना| अक्सर गलत समझा गया है। अक्सर यही समझा गया है कि वे राजसिंहासन से उतर गये। मैं तुमसे क और बात कहना चाहता हूं - वे असली सिंहासन पर चढ़ गये, इसलिए झूठे सिंहासन से उतरना पड़ा है। पहले लकडी-पत्थरों के सिंहासनों पर बैठे थे, अब उन्हें हीरे-जवाहरातों के सिंहासन मिल गये, वे क्यों बैठें? हालांकि तुम्हें नहीं दिखायी पड़े हीरे-जवाहरात के सिंहासन, क्योंकि तुम अंधे हो और तुम्हारी आंखों को हीरे-जवाहरात दिखायी पड़ने बंद हो गये हैं। तुम कंकड़-पत्थरों के सौदागर हो । तुम्हें व्यर्थ की चीजें दिखायी पड़ती हैं, सार्थक चूक जाता है। महावीर और बुद्ध असली सिंहासन पर बैठ गये, इसलिए फिर नकली सिंहासन से उतरना ही पड़ा, दो-दो पर तो बैठा नहीं जा सकता। दो सिंहासन पर तो कोई भी नहीं बैठ सकता।
एक राजनेता मुल्ला नसरुद्दीन को मिलने आया। तो मुल्ला नसरुद्दीन अपनी कुर्सी पर बैठा है, उसने कहा, कहिए, कैसे आए? राजनेता को बडा बुरा लगा, क्योंकि मुल्ला ने यह भी नहीं कहा कि बैठिये। उसने कहा, तुम जानते नहीं हो मैं कौन हूं? पार्लियामेंट का मेंबर हूं। संसद सदस्य हूं। तो मुल्ला ने कहा, अच्छी बात है, तो कुर्सी पर बैठिये। उसने कहा, तुम्हें यह भी पता नहीं है कि जल्दी ही मैं मिनिस्टर हो जानेवाला हूं। तो मुल्ला ने कहा, तो फिर ऐसा करिये दो कुर्सी पर बैठ जाइये अब