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है हूं कि दो आंखों से क्या-क्या देखूं
तब तो हजार आंखें भी हों तो भी तृप्ति न होगी। क्योंकि परमात्मा इतना विराट है । सब तरफ उसी का नृत्य चल रहा है। और तुम पूछते हो, परमात्मा की परिभाषा क्या है? और परमात्मा ही है सब तरफ। और तुम पूछते हो, परमात्मा की प्रतिमा क्या है? और उसके अतिरिक्त और किसी की प्रतिमा नहीं है। एक का ही खेल है।
लेकिन तुम्हारे प्रश्न को मैं समझा। तुम्हारा प्रश्न न तो परमात्मा की परिभाषा से संबंधित है, न परमात्मा की प्रतिमा से तुम्हारा प्रश्न असल में यह कह रहा है कि तुम्हारे पास आंखें नहीं हैं, तुम अंधे हो, तुम्हारी आंखें बंद हैं, या तुम सोए हो। अगर कोई आदमी पूछने लगे कि सूरज की परिभाषा क्या है, तो क्या समझोगे? और कोई आदमी पूछने लगे कि सूरज कहां है? और सूरज निकला है चारों तरफ उसकी रोशनी बरसती है! और कोई आदमी धूप में खड़ा है और पूछने लगे कि सूरज की परिभाषा, सूरज कहां है, कोई मुझे परिभाषा दे दे, तो हम क्या समझेंगे? हम समझेंगे, या तो इस आदमी की आंखें बंद हैं, या अंधा है। सूरज अनुभव है, परिभाषा तो नहीं। प्रकाश की कोई परिभाषा नहीं है, जाना हो तो जाना, नहीं जाना तो नहीं जाना ।
तो अभी एक बात जानना कि परमात्मा अभी जाना नहीं है। और परिभाषाओं को पकड़कर मत सोच लेना कि जान लिया, या जानना हो गया। जानना हो तो प्रेम में चलना पड़े। परिभाषा मत पूछो प्रेम का पता पूछो। परिभाषा पंडित बना देगी और सदा-सदा के लिए भटक जाओगे। मैं तुमसे फिर-फिर कहता हूं, पापी भी पहुंच जाते हैं लेकिन पंडित नहीं पहुंचते
इससे संबंधित एक प्रश्न और है
आप प्रेम को प्रार्थना कहते हैं, प्रेम को ही परमात्मा कहते हैं, क्यों?
ऐसा है, इसलिए। क्यों का सवाल नहीं। ऐसा है। सचाई है। तुम्हारे जीवन में जो थोडी-बहुत सुगंध कभी प्रेम की उठी हो, तो जानना वहीं से द्वार मंदिर का खुलेगा। उस दरवाजे को बंद मत कर देना, तुम्हारे साधु - संत चाहे तुमसे कुछ भी कहें। उस दरवाजे को बंद कर दिया तो तुम फिर भटकोगे। भटकते रहोगे । और तुम्हें परमात्मा की कोई खबर न मिलेगी।
परमात्मा की जो पहली पुलक है, उसका नाम ही प्रेम है। परमात्मा का जो पहला अनुभव है - परमात्मा शब्द भी उस अनुभव में नहीं आता - उसी का नाम प्रेम है। फिर प्रेम ही पवित्र होकर प्रार्थना बनता है, फिर प्रार्थना पवित्र होकर परमात्मा बन जाती है। ये प्रेम के ही चरण हैं। यह प्रेम की ही सीडी है। काम इस सीढ़ी का सबसे नीचे का सोपान है और राम इस सीडी का सबसे ऊपर का सोपान है। मगर सीडी एक है - काम से राम । काम उसी का है- धूल धूसरित । राम भी वही है - सब धूल पोंछ दी गयी, झाड़ दी गयी - स्वच्छ, ताजा ।
धर लिये प्यासे अधर पर आह के सागर प्यास पूरी इस मरुस्थल की नहीं होती पीलिया इस उम्र ने वह प्रेम - गंगाजल