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जिसने कहा कृष्ण के सिवाय किसी में नहीं, वह आदमी भी नास्तिक। जिसने भी परमात्मा को सीमा दी, वह परमात्मा का दुश्मन। जिसने परमात्मा को मुक्ति दी... तुम मुक्त होना चाहते हो, कम से कम परमात्मा को तो मुक्त करो। तुम तो मुक्त हो ही नहीं, परमात्मा तक को बंधनों में डाला है। जाना जाता है परमात्मा निकट में और निकट को पहचानने का मार्ग प्रेम है। अनुमान नहीं, तर्क नहीं। जब तुम्हारा हृदय गीत गुनगुनाता है जब तुम्हारा हृदय गदगद होता है प्रेम के भाव में, तब तुम परमात्मा का अनुभव करते हो। परमात्मा अनुमान नहीं, प्रेम की प्रतीति है।
टेर रही प्रिया
तुम कहां?
किसकी यह छाह
और किसके ये गीत रे
सिहर रहा जिया
तुम कहां?
किसके ये कांटे हैं
किसके ये पात रे
बिहर रहा हिया -
तुम कहा गुम
बिरम गये पिया
तुम कहां?
जब तुम प्रेमी की तरह पुकारोगे। परिभाषा, परमात्मा की ! परिभाषाएं गणित में होती हैं। यूक्लिड़ से पूछो तो ज्यामिती की सब परिभाषाएं बता देता है। परिभाषाएं आदमी की बनायी हुई हैं। तुम्हारे भीतर कुछ ऐसा है जो तुम्हारा बनाया हुआ नहीं उससे ही परमात्मा को खोजो। तुम्हारे भीतर प्रेम है जो तुम्हारा बनाया हुआ नहीं
तुमने एक बात देखी? आदमी सब बना ले, प्रेम नहीं बना पाता। मंदिर बना लो, मस्जिद बना लो, बड़े मंदिर बनाओ, बड़ी मस्जिद बनाओ, लेकिन अगर कोई तुमसे कहे कि प्रेम बनाओ, तो तुम कहते हो, बड़ी मुश्किल, हो तो हो, नहीं हो तो नहीं हो । लाख कोई कहे कि इसी आदमी से प्रेम करो, तुम कहोगे, मगर करें कैसे! हो तो हो, न हो तो न हो । होता है तो होता है, नहीं होता तो नहीं होता । आदमी के हाथ में कहां?
करो, तो परमात्मा तक पहुंच जाओगे|
जो आदमी के हाथ में नहीं है, उसी पर सवारी मंदिर तुमने बना लिये, वह आदमी के हाथ में है। सुंदर मंदिर बना लिये। प्रतिमाएं तुमने बना लीं, वह आदमी के हाथ में हैं। सुंदर प्रतिमाएं बना लीं। लेकिन जो भी आदमी के द्वारा निर्मित है उससे परमात्मा की कोई पहचान न हो सकेगी। तुम अपने भीतर उसको खोजो जो तुम्हारे बनाने में नहीं आता। उसी सूत्र को पकड़ो।