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उसको सताता। रास्ते पर मिल गया, कोई कह देता है, अरे, ताला ठीक से देख लिया है कि नहीं? तो पहले तो वह कहता है, देख लिया है, मुझे परेशान करने की जरूरत नहीं है। लेकिन दो कदम जाकर उसको शंका पैदा हो जाती है कि पता नहीं यह आदमी ठीक कह रहा हो! तो वह फिर लौटकर, आधे बाजार से लौटकर चला आएगा, फिर ताला हिलाकर देखेगा।
मैं उसे बैठा देखता रहता था, मैंने उससे कहा कि मामला क्या है? उसने कहा, यह पता नहीं मुझे क्यों आदत पड़ गयी है? मैंने कहा, यह ताले का सवाल नहीं है, तेरे भीतर कहीं भय होगा। ताले में क्या रखा है, तेरे भीतर कहीं भय होगा। कुछ. भय है। तूने कुछ छिपा रखा है घर में कि कोई चोरी चला जाए, या क्या हो जाए! इस गांव में इतने पैसेवाले लोग हैं, कोई ताला नहीं हिलाता, एक तू है -तेरी कोई हालत भी अच्छी नहीं है, दिन भर बमुश्किल मेहनत करके रुपये -दो रुपये कमा पाता है -तू छिपाए क्या है? वह थोड़ा घबड़ाया। वह कहने लगा, आपको पता कैसे चला? मैंने कहा, पता का सवाल ही नहीं है, इसमें पता चलने की क्या बात है, तेरा भय बता रहा है कि कुछ छिपा बैठा है। और तेरा यह ताला नहीं छूटेगा, क्योंकि तुझे लोग इतना सताते हैं। वह नदी में नहीं रहा है, और बीच में कह दो जरा कि अरे, सोनी जी! ताला! अब वह, पहले तो वह गाली देगा, नाराज होगा कि नहींने भी नहीं देते फुरसत से, मगर वह एक मिनट से ज्यादा नही रुक सकता है पानी में, वह निकला, भागा, वह ताला! उसका लाख लोग समझा चुके हैं कि तू ताला हिलाना छोड़ इसमें कुछ सार नहीं है, एक दफे देख लिया, हिला लिया, बहुत हो गया।
और जब मैंने उसको कहा कि ताला असली सवाल नहीं है, तू सोचता है कि ताले से तेरी उलझन है, यह बात गलत है, कुछ और मामला है। भय है कुछ। उस दिन से उसने ताला हिलाना छोड़ दिया। मैंने उससे पूछा कि मामला क्या है? गांव बड़ा चकित हुआ| क्योंकि लोग उससे कहें, सोनी जी, ताला! वह कहे कि तुम्ही हिला लेना। जा रहे हो उसी तरफ, जरा हिला लेना। लोग बड़े चौंके कि हुआ क्या? मामला क्या है? मामला कुछ भी न था। बड़ी छोटी-सी बात थी। एक भय था उसके मन में, पैसे उसने गड़ा रखे थे। वह उन्हीं में उलझा हुआ था। मैंने उससे कहा, तू पैसे निकाल ले,
कुछ बैंक में जमा कर आ| कुछ ज्यादा पैसे भी नहीं थे -ज्यादा -कम का कहां हिसाब है, आदमी एक पैसे को लेकर भयभीत हो सकता है। भय हो, तो हजार कंपन उठते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं हो जाएगा, कहीं वैसा तो नहीं हो जाएगा। कहीं कोई निकाल तो नहीं लेगा। भय हो तो मन कंपता है। कंपता है तो इंतजाम करना पड़ता है कैपने से रुकने का। लेकिन जहां भय गया, वहा सब कंपन चला जाता है।
भय क्या है? भय एक है कि मौत होगी। और तो कोई खास भय नहीं है। मरना पड़ेगा, यह भय है। जब तक तुम्हें लगता है कि मरना पड़ेगा, मरना होगा, मौत आएगी, तब तक तुम कंपते रहतो। कंपन से फिर सब पैदा होता है, लहरों पर लहरें उठती हैं-जागने की, सोने की, सपने की, नींद की, तुरीय की। लेकिन जिस दिन तुमने यह स्वीकार कर लिया कि जो है, वह कैसे मरेगा। और जो नहीं है, वह बचने से भी कैसे बचेगा। मैं तो मरूंगा, अहंकार की तरह मरूंगा ही, क्योंकि अहंकार शाश्वत