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में अटकी है, जो ऊर्जा हृदय में उलझी है, वह मुक्त हो जाती है। वह मुक्त हुई ऊर्जा वह जो कमल का फूल तुम्हारे मस्तिष्क में प्रतीक्षा कर रहा है जन्मों-जन्मों से, उसे ऊर्जा मिल जाए तो वह खिल जाए। ऊर्जा के मिलते ही वह खिल जाता है। वही मुक्ति है।
अगर बंधन कहीं है तो पेट और हृदय में है। अगर तुमने कुछ भी दबाया है, तो या तो वह पेट में पड़ गया होगा या हृदय में पड़ गया होगा। अधिकतर तो पेट में पड़ता, क्योंकि चित्त का दबाने योग्य लोगों के पास कुछ होता ही नहीं। जैसे समझो, तुमने अगर कामवासना दबायी तो पेट में पड़ जाएगी। तुमने क्रोध दबाया, तो पेट में पड़ जाएगा। तुमने ईर्ष्या, घृणा, हिंसा दबायी, तो पेट में पड़ जाएगी। यह सब शरीर के तल की घटनाएं हैं, बड़ी छन्द्र। पहले तल की घटनाएं हैं।
किस आदमी ने अगर प्रेम दबाया, तो हृदय में पड़ेगा। गीत दबाया तो हृदय में पड़ेगा। संगीत दबाया तो हृदय में पड़ेगा। करुणा दबायी-फर्क समझ लेना, क्रोध दबाया तो पेट में पड़ता है, करुणा दबायी तो हृदय में पड़ती है। उठी थी करुणा, देने का मन हो गया था कि दे दें और दबा ली, तो हृदय
अवरुद्ध हो जाएगा। उठा था क्रोध और दबा लिया छ, तो पेट अवरुद्ध हो जाएगा। क्रोध नीचे तल की बात है, करुणा जरा ऊंचे तल की बात है। हम तो अधिकतर सौ में नब्बे मौके पर बिलकुल नीचे तल पर जीते हैं। इसलिए हमारा उपद्रव .सब पेट में होता है। और फिर पेट की विकृतियां हजार तरह की बाधाएं, व्याधियां पैदा करती हैं। शरीर के तल पर जो बीमारियां पैदा होती हैं, उनमें भी सत्तर प्रतिशत तो पेट में दबाए गये मानसिक विकारों का ही हाथ होता है।
योग में बड़ी प्रक्रियाएं हैं पेट को शुद्ध करने की। लेकिन वे तो लंबी प्रक्रियाएं हैं। और फिर भी किसी योगी का कोई छुटकारा होता दिखता है, ऐसा बहुत कठिन होता है। लंबी यात्रा है। जन्मों-जन्मों तक योग के द्वारा कोई पेट का शोधन करता रहता है, तब कहीं कुछ हल हो पाता है।
लेकिन जनक कहते हैं कि आपने तो अपने शब्दों के वाणों से मेरे भीतर चुभे वाणों को निकाल लिया। मैं खाली हो गया। मैं रिक्त हो गया। मैं हल्का हो गया। मैं स्वस्थ हो गया हूं।
'हृदय और उदर से अनेक तरह के विचार रूपी वाण को निकाल दिया है।' नानाविध परामर्श।
यह भी शब्द समझने जैसा है। तुम्हारी जिंदगी में इतनी सलाह दी हैं लोगों ने तुम्हें उन्ही सलाहों के कारण तुम झंझट में पड़े हो।
नानाविध परामर्श।
जो देखो वही सलाह दे रहा है, जिसको कुछ पता नहीं वह भी सलाह दे रहा है। सलाह दैने में लोग बड़े बेजोड़ हैं। तुम किसी से भी सलाह मांगो, वह यह तो कहेगा ही नहीं कि भई, इसका मुझे अनुभव नहीं है। यह तो कभी कहेगा ही नहीं कि इस संबंध में मैं कुछ नहीं कह सकता। तुम क्रोधी से क्रोधी आदमी से सलाह मांगो कि क्रोध के संबंध में क्या करूं, तो तुम्हें सलाह देगा कि क्या करो। शराबी भी तुम्हें सलाह देगा कि शराब कैसे छोड़ो। चोर तुम्हें चोरी के विपरीत सलाह दे सकता है।