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भी नहीं देखता है और बोलता हुआ भी नहीं बोलता है।'
जानन्नपि न जानाति पश्यन्नपि न पश्यति। बूवन्नपि न च बूते कोउन्यो निर्वासनादृते।।
ऐसा पुरुष जिसकी अब कोई वासना नहीं, जिसे पाने को कुछ शेष नहीं, जिसने भविष्य को त्याग दिया, अब जिसका कोई भविष्य नहीं, जो यहां और अभी परितृप्त, परितुष्ट, इस क्षण जिसका मोक्ष है, ऐसा जो वासनारहित पुरुष है, उसके अतिरिक्त दूसरा कौन है जो जानता हुआ भी नहीं जानता!
और ऐसा पुरुष देखता भी है और फिर भी देखता नहीं, क्योंकि अब देखने की कोई वासना नहीं रही। सुनता है और सुनता नहीं। अब सुनने की कोई वासना नहीं रही। छूता है और छूता नहीं, क्योंकि छूने की अब वासना नहीं रही। एक सुंदर स्त्री बुद्ध के सामने से निकलेगी तो ऐसा थोड़े ही कि उन्हें दिखायी नहीं पडेगी! दिखायी पड़ती और नहीं दिखायी पड़ती।
बात को समझ लेना।
तुम तो कई दफे ऐसा करते हो कि सुंदर स्त्री जाती है तो तुम देखते ही नहीं उसकी तरफा लेकिन तुम्हारे न देखने में भी वह दिखायी पड़ती है। तुम ऐसा आख चुराते हो कि कोई देख न ले कि इसे देख रहे थे। या तुम अपने से बचना चाहते हो कि यह झंझट में न पड़े, इसे न देखें तुम इधर-उधर आख करते हो, लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है, तुम्हारी इधर-उधर होती आख से भी तुम देखते तो उसी को हो। तुमने देख तो लिया, तुम देख तो रहे ही हो।
बुद्धपुरुष के सामने से कोई स्त्री निकलेगी तो देखते हैं-आख भी नहीं छिपाते, क्योंकि आख छिपाने का तो कोई प्रश्न नहीं, क्या चुराने का क्या सवाल है जो आख के सामने आ जाता है दिखायी पड़ता है, और फिर भी नहीं देखते क्योंकि देखने की कोई वासना नहीं है।
बुद्धपुरुष लौटकर नहीं देखते। तुम लौट-लौटकर देखते हो। तुम देखने में बड़े आतुर हो। बुद्धपुरुष की आंखें शून्यवत होती हैं। दर्पण की तरह होती हैं, कोई सामने आया तो तस्वीर बन जाती है, कोई चला गया तो तस्वीर मिट जाती है। फिर दर्पण सूना हो गया। कोई पकड़ नहीं है।
__'वासनारहित पुरुष के अतिरिक्त दूसरा कौन है जो जानता हुआ भी नहीं जानता है देखता हुआ भी नहीं देखता है और बोलता हुआ भी नहीं बोलता है।'
ब्रूवन्नपि न च बूते।। इसीलिए तो कल मैंने तुमसे कहा कि बुद्ध बोले चालीस साल, फिर भी नहीं बोले।
महावीर के संबंध में दिगंबर जैनों की धारणा बड़ी अदभुत है। पर समझ नहीं पाए दिगंबर जैन भी। दिगंबर जैनों की धारणा है कि महावीर बोले नहीं, बोले ही नहीं। इसलिए दिगंबर जैनों के पास कोई शास्त्र नहीं है। जो शास्त्र हैं वे श्वेतांबर जैनों के पास हैं। और दिगंबर जैनों का उन शास्त्रों में कोई भरोसा नहीं। क्योंकि वे तो महावीर तो कभी बोले ही नहीं! ये शास्त्र तुमने बना लिये। ये सब बनाए हुए शास्त्र हैं, महावीर तो चुप रहे। बात तो बड़ी सच है कि महावीर कभी नहीं बोले। और फिर भी मैं तुमसे कहता हूं कि श्वेतांबरों के जो ग्रंथ हैं वे झूठ नहीं हैं।