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कइवा है, देर- अबेर समझ में आ जाएगा। जिस दिन जीवन पर तुम्हारी पकड छूटेगी उस दिन संन्यास का जन्म होता है। फिर मैं तुम्हें जीवन से छोड़कर भाग जाने को तो कहता नहीं-संन्यास के बाद भी नहीं कहता। क्रांति तो अंतर में है, भीतर की है। रहोगे वहीं, जहां हो। और ढंग से रहोगे। बोधपूर्वक रहोगे। जागकर रहोगे। लेकिन जल्दी मत करो। अगर कहीं कुछ थोड़ा-बहुत रस उलझा रह गया है उसका भी निपटारा कर लो। उसका भी चुकतारा कर लो।
आखिरी प्रश्न :
मैं सदा से आपका विरोधी था। लेकिन जबसे आपके निकट आया हूं, पता नहीं क्या हो गया है? आप कुछ नशे जैसे हैं। क्या पिला दिया है? नशा उतरता नहीं। और ऐसा डर भी लगता है कि कहीं पागल तो नहीं हो जाऊंगा।
सच कहा था तूने जाहिद जहर-ए-कातिल है शराब हम भी कहते थे यही जब तक बहार आयी न थी
दूर से विरोधी होना बड़ा आसान है। स्वाद के बाद विरोधी होना बड़ा कठिन है। इसीलिए अक्सर विरोधी पास आते ही नहीं, दूर ही बने रहते हैं। दूर में विरोध बड़ा सुगम है। न जाना, न देखा, अड़चन नहीं कुछ। जो सुन लिया, मान लिया, जो सुन लिया, अपने हिसाब से बढा लिया, घटा लिया, रंग -रूप दे दिया। दूर रहकर बड़ी सुगमता है-विरोध की।
पास रहकर विरोध कठिन है। क्योंकि कितने ही तुम बेहोश होओ, इतने बेहोश तो नहीं कि कुछ भी समझ में न आए। और कितने ही तुम सोए होओ, इतने तो सोए नहीं कि जो पुकार मैं दे रहा हूं वह बिलकुल भी सुनायी न पड़े। थोड़ा-बहुत स्वर तो पहुंचेगा
सच कहा था तूने जाहिद जहर-ए-कातिल है शराब । हम भी कहते थे यही जब तक बहार आयी न थी
स्वाद लेने के बाद ही कुछ कहना चाहिए। बुद्धिमान आदमी दूर से कोई वक्तव्य न देगा, न पक्ष में, न विपक्ष में। बुद्धिमान आदमी सुनी-सुनायी बातों पर निर्णय न लेगा। बुद्धिमान आदमी स्वयं देखेगा। देखेगा ही नहीं, स्वयं अनुभव करेगा। अनुभव के बाद ही वक्तव्य देगा-पक्ष में, या विपक्ष में। और तभी किसी वक्तव्य का कोई मूल्य है।
पूछिए मयकशों से लुक-ए-शराब यह मजा पाकबाज क्या जाने