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वही तो ज्ञानी है।
'ज्ञानी न सुखी है और न दुखी, न विरक्त है और न संगवान है; न मुमुक्षु है, न मुक्त है, न कुछ है और न ना -कुछ है; न यह है और न वह है।'
न सुखी न च वा दुःखी न विरक्तो न संगवान्। न मुमुक्षुर्न वा मुक्तो न किचिन च किंचन।। 'न कुछ है और न ना-कुछ है।'
न तो तुम ऐसा कह सकते-ऐसा है और न ऐसा कह सकते कि ऐसा नहीं है। यह तो कृत्यों का विभाजन होगा। जानी न सुखी, न दुखी। क्योंकि सुख-दुख भी भोक्ता बनने से होते हैं। तुमने किसी अनुभव से अपने को जोड़ लिया-लगाव से जोड़ लिया तो सुख, न जुड़ना चाहा था और जोड़ना पड़ा तो दुख-लेकिन जोड़ हर हालत में घटता है। ज्ञानी अपने को तोड़ लिया है। जो होता, होता; जो नहीं होता, नहीं होता। ___ 'न विरक्त है, न संगवान है।'
ज्ञानी न तो किसी के साथ है और न अलग है। ज्ञानी भीड़ में भी अकेला है। और अकेले में भी सारा अस्तित्व उसमें समाया हुआ है।
'न मुमुक्षु है, न मुक्त है।'
न तो खोज रहा है, न यह कह सकता कि खोज लिया। क्योंकि जब तुम जानोगे तब तुम पाओगे जो तुमने पाया उसे कभी खोया ही नहीं था। इसलिए खोज लिया, यह बात फिजूल है। न तो ज्ञानी खोज रहा है और न यह कह सकता है कि मैंने खोज लिया। ज्ञानी तो इतना ही कह सकता है कि जो था, है। जो था, सदा था। मैं भूल गया था कभी, फिर कभी मैं जाग गया और मैंने देख लिया, मगर खोया कभी भी नहीं था।
'न कुछ है, न यह, न वह।' ज्ञानी के लिए कोई परिभाषा में बांधना संभव नहीं है।
'धन्यपुरुष विक्षेप में भी विक्षिप्त नहीं हैं, समाधि में भी समाधिमान नहीं हैं, जड़ता में भी जड़ नहीं हैं और पांडित्य में भी पंडित नहीं हैं।
विक्षेपेउपि न विक्षिप्त: समाधौ न समाधिमान जाडधेउपि न जडो धन्य: पांडित्येउपि न पंडितः।।
इसलिए कभी अगर तुम्हें ज्ञानी पंडित जैसा मालूम पड़े तो पंडित मत सोच लेना। क्योंकि ज्ञानी कभी पंडित नहीं है। पांडित्य का उपयोग कर सकता, लेकिन पंडित नहीं होता। और कभी तुम्हें ज्ञानी जड़भरत की तरह मिल जाए, तो भी तुम जड़ मत समझ लेना। जडूता भी घट रही तो घट रही। लेकिन शानी पीछे पार खडा है। एक सूत्र मौलिक याद रखना, ज्ञानी हर स्थिति में बाहर है।
अंग्रेजी में समाधि के लिए जो शब्द है वह बड़ा प्यारा है, वह है इक्सटैसी। इक्सटैसी शब्द का अर्थ होता है, जो बाहर खड़ा है। यह बड़ा अदभुत शब्द है। जिन्होंने गढ़ा होगा, बड़े सोचकर गढ़ा