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मत, उसे भोगो, उसके प्रति जागो। जो आज है, उसे भर नजर देखो न तो पीछे अपने मन को भरमाओ,
आगे अपने मन को भरमाओ । मन को भरमाओ ही मत। सांत्वनाएं मत खोजो । सत्य को देखो। क्योंकि सत्य से ही सुख जन्म सकता है, सांत्वनाओं से नहीं ।
बीत गये
प्यारे रतनारे दिन बीत गये रीत गये
आंखों के खारे छिन रीत गये अरुणा अधरों के
म से चुंबन
मोड़ दिया पाल
काजल की डोरी से
बंधी-बंधी मछली ने
छोड़ दिया ताल
द्वारे पर
बहरे हरकारे बिन गीत गये बीत गये
प्यारे रतनारे दिन बीत गये रीत गये
आंखों के खारे छिन रीत गये
लोग रो रहे हैं। सब बीत गया। सुख बीता, शांति बीती, सौंदर्य बीता, स्वास्थ्य बीता, सब बीता। मत इसमें पड़े रहो। तुम कहते हो, यह व्यर्थ है: मैं तुमसे कहता हूं, जानो यह व्यर्थ है। यह शक्ति मत खोओ। यही शक्ति ध्यान बन सकती है। यही ऊर्जा जो तुम आंख बंद करके अतीत के सपनों में लगा रहे हो, यही शक्ति निर्विचार बन सकती है। यही शक्ति प्रार्थना - पूजा बन सकती है। या तो इसे प्रार्थना बनाओ, या इसे ध्यान बनाओ। क्योंकि प्रार्थना और ध्यान से ही तुम उसे पाओगे जो सुख है, जो महासुख है। और किसी तरह किसी आदमी ने कभी सुख न पाया है, न पा सकता है। लेकिन कुछ भी तुम करो, ऊर्जा तो व्यय होती है, शक्ति तो नष्ट होती है। और यह बड़ी व्यर्थ की बात है। बैठे हैं, सोच रहे हैं। यह व्यर्थ की बात है, लेकिन तुम्हें अभी दिखायी नहीं पड़ी इसलिए आदत छूटती नहीं है। मेरे कहने से मत मान लेना कि व्यर्थ की है, तुम खुद की सोचो, खुद ही ध्यान करो, खुद ही विमर्श करो। यह व्यर्थ तो है ही, इससे सार क्या है? जो कभी हुआ था, उसको लेकर क्यों बैठे हो ? उसकी क्यों राशि लगा रहे हो? अब तो दोहर भी नहीं सकता, फिर तो हो भी नहीं सकता, जो गया गया। इस जगत में कुछ भी पुनरुक्त नहीं होता। समय लौटकर आता नहीं । अब क्यों बैठे हो? अब यह हिसाब-किताब बंद करो, यह बही-खाते जलाओ।