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भक्त का नृत्य तो परिधि पर घटता है, ज्ञानी का नृत्य केंद्र पर। इसलिए ज्ञानी के नृत्य को शायद तुम देख न पाओ। बुद्ध बैठे हैं बोधिवृक्ष के नीचे, किसी ने देखा नहीं नाचते, मैं तुमसे कहता हूं नाच रहे हैं| भरोसा करो, नाच रहे। क्योंकि नृत्य तो अनिवार्य है। गा रहे । यद्यपि यह गीत ऐसा है कि जब तक तुमने भी इस तरह न गाया हो, तुम पहचान न सकोगे, यह भाषा अनेरी है। हां, मीरा नाचेगी तो तुम भी देख लोगे, हालांकि तुम मीरा की भांति नाचे नहीं हो। लेकिन मीरा का नृत्य देह पर हो रहा है। देह की भाषा तुम जानते हो। यद्यपि मीरा का नृत्य भी तुम न समझोगे, मीरा के परिवार के लोग भी न समझे । परिवार के लोगों ने कहा, यह क्या लोक-लाज खो दी ! यह कोई ढंग है! वेश्याएं नाचती हैं ऐसा, आवारा औरतें नाचती हैं ऐसा, राजघर की कुलीन रानी और ऐसे सड़कों पर नाचे! वे भी न समझे। लेकिन इतना समझ गये कि मीरा नाच रही है।
का अर्थ तो समझे, नाच दिखायी पड़ा। नाच का अर्थ उन्होंने अपनी ही दृष्टि से लिया, जैसा नाच वे देखते रहे थे। ये मीरा के घर के लोग राजघराने के लोग थे, वेश्याओं को नचाते रहे होंगे दरबारों में, उस बात को समझते थे। उन्होंने कहा, यह क्या हुआ, मीरा वेश्या जैसी नाचे! भेजा। नाच दिखायी पड़ गया, नाच का अर्थ चूक गया। पर नाच दिखायी पड़ गया।
ज्ञान तो नाच दिखायी पड़ेगा, अर्थ की तो बात ही कहां है! अर्थ तो भक्त का भी दिखायी नहीं पड़ता।
तो बुद्ध तुम्हें बैठे दिखायी पड़ते हैं। जिस दिन तुम परम शात होओगे, ध्यान में ड़बोगे, उस दिन तुम्हें बुद्ध की गुनगुनाहट भी सुनायी पड़ेगी अनाहत नाद वहां हो रहा है। ऐसा नाद हो रहा है जिसे करने के लिए कोई उपाय नहीं करने होते, अपने से हो रहा है। ओंकार गज रहा है। झेन फकीर कहते हैं, एक हाथ की ताली बज रही है। कम से कम ताली बजाने को दो हाथों की जरूरत होती है, झेन फकीर कहते हैं, अब एक हाथ की ताली बज रही है। अब ऐसी ताली बज रही है जो बजानी नहीं पड़ती, अपने से बज रही है। हो ही रहा है। इसे ऐसा कहें तो ज्यादा अच्छा होगा, अस्तित्व नृत्य है, अस्तित्व गीत है, अस्तित्व उत्सव है। उत्सव हो ही रहा है, तुम सिर्फ अंधे हो। तुम्हारी आंख पर पट्टी बंधी है। तुम्हें दिखायी नहीं पड़ रहा है। इससे तुम चूके जा रहे हो।
भक्त प्रेम की आंखें खोल लेता है, ज्ञानी ध्यान की आंखें खोल लेता है। ये दो शब्द अलगअलग मालूम पड़ते हैं, क्योंकि अलग-अलग मार्गों के हैं, लेकिन अंतिम परिणाम सदा एक है।
मिट्टी भी हंसती है, ऐसा सुनकर मैं हंसता था पहले फूलों का परिवार देखकर अब विश्वास हुआ है मुझको कितनी कलियों की आंखों में गूंज रही खुशबू की गीता