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'मुक्तपुरुष न स्तुति किये जाने पर प्रसन्न होता है और न निंदित होने पर क्रुद्ध होता है। वह मृत्यु में उद्विग्न होता है, न जीवन में हर्षित होता है । '
न प्रीयते वद्यमानो निदद्यमानो न कुप्यति ।
नैवोद्विजति मरणे जीवने नाभिनंदति ।।
नहीं मृत्यु में उसे कोई विरोध है, न जीवन में कोई आग्रह । हर चीज के बाहर खड़ा देखता । जीवन में जीवन के बाहर, मृत्यु में मृत्यु के बाहर । स्तुति जब की जाती, तब सुन लेता। निंदा जब की जाती, तब सुन लेता। निंदा भी तुम करते तुम जानो, स्तुति भी तुम करते तुम जानो न निंदा उसे डंवा पाती, डुला पाती, कुपित कर पाती न स्तुति उसे प्रफुल्लित कर पाती । उद्विग्नता चली गयी, जो बाहर खड़ा होने का राज सीख गया ।
खयाल करना, हर्ष भी एक तरह की उद्विग्नता है और विषाद भी एक तरह की उद्विग्नता है। एक तरह का ज्वर। तुम हर्ष में भी तो बहुत ज्यादा कंपित हो जाते हो| लाटरी मिल गयी, हृदय इतने जोर से धड़कने लगता है, कितनों का तो हार्टफेल इसीलिए हो जाता है। एकदम सफलता मिल गयी। सफलता बड़ी चिंता ले आती है। अमरीका में चिकित्सक कहते हैं कि जो आदमी चालीस साल की उम्र तक हार्ट अटैक से बीमार न हो, वह आदमी समझो कि असफल हो गया। सफल आदमी तो हो ही जाता है, चालीस - पैंतालीस के बीच कहीं न कहीं हार्ट अटैक के चक्कर में आ ही जाता है। सफल आदमी को आना ही पडेगा। सफल आदमी और करेगा क्या? जब सफलता मिलेगी तो धक्के तो लगेंगे हृदय को। प्रफुल्लता तो डांवाडोल करेगी।
सफल आदमी को अगर अल्सर न हों पेट में तो समझना, क्या खाक सफलता? तो बेकार ही जीवन गंवाया! अल्सर की गिनती से तो पता चलता है कि कितनी सफलता ? अल्सर से तुम बैंक बैलेंस का पता लगा सकते हो। अल्सर से पता चल जाता है कि डिप्टी मिनिस्टर, कि मिनिस्टर, कि केबिनेट में हो, यहां कि दिल्ली में कहां ? अल्सर से पता चल जाता है। उद्विग्नता । एक तरह का ज्वर। झंझावात। दुख भी लाते हैं झंझावात, सुख भी लाते हैं। और बड़ी हैरानी की बात है, दुख इतने झंझावात नहीं लाते हैं जितने सुख लाते हैं। तुम दुखी आदमी को कभी भी इतना परेशान न पाओगे। सुखी आदमी तुम्हें ज्यादा परेशान मिलेंगे| इसलिए अमरीका में जितनी परेशानी, दुनिया में कहीं भी नहीं। और अमरीकन जब भारत आते हैं तो बड़े प्रभावित होते हैं इस बात से कि कुछ भी नहीं है लोगों के पास, झोपड़े के सामने बैठे हैं और ऐसे प्रसन्न हैं !
देवेश की मां इंग्लैंड से आयी । जब उसने-बूढ़ी महिला - जब एअरपोर्ट से उतरकर और उसने देखे बंबई के झोपडुपट्टे और गंदगी, तो वह भरोसा ही नहीं कर सकी कि यह बीसवीं सदी है। और भी चमत्कार तो तब हुआ जब नंग धडंग बैठे बच्चे उसने प्रसन्न देखे। और जब उसने एक बिलकुल गंदी धोती पहने हुए, चीथड़ा धोती पहने हुए एक स्त्री को एक झोपझट्टे से बाहर आते हुए देखा और उसकी चाल ऐसे जैसे कोई रानी चल रही है। तो वह भरोसा न कर सकी ।
पश्चिम से समृद्ध लोग जब पूरब आते हैं और दरिद्र लोगों को देखते हैं और फिर भी देखते