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क्षण। इसे समझना। ऐसा धीरपुरुष क्षण-क्षण तृप्त है। क्यों? अब अतृप्ति का कोई उपाय ही न रहा। अतृप्ति आती है तादात्म्य से। या तो बंध जाओ जागृति से, या बंध जाओ स्वप्न से, या बंध जाओ सुषुप्ति से जहां बंधे, वहा संकट है। जहां बंधे, वहां गांठ पड़ी। जहां गांठ पडी, वहा पीड़ा है। जहां पीड़ा, वहां संताप, चिंता और सारा नर्क पीछे चला आता है। गांठ ही नहीं पड़ती ऐसे आदमी को। वह हर जगह से अछूता निकल जाता है।
__ इसीलिए तो कबीर ने कहा है, ज्यों की त्यों धरि दीन्ही चदरिया। खूब जतन कर ओढ़ी चदरिया, ज्यों की त्यों धरि दीन्ही। खूब जतन कर। जतन शब्द बड़ा महत्वपूर्ण है, उसका मतलब होता है, अवेयरनेस; उसका अर्थ होता है, जागृति, होश रहे। खूब जतन से, जरा भूल-चूक न की, जरा नींद न ली, जरा झपकी न खाई, जागे -जागे। खूब जतन से ओढ़ी रे चदरिया। और जीवन की चादर को इतने जतन से ओढ़ा कि जरा दाग न लगा। और ज्यों की त्यों धरि दीन्ही चदरिया। जैसी पायी थी जन्म के साथ, स्वच्छ, निर्मल, क्यारी, वैसी ही मृत्यु के समय वापस दे दी, निर्मल, क्यारी, स्वच्छ। जैसे उपयोग ही न की गयी। भोक्ता न बने, कर्ता न बने, तो जीवन की चादर पर दाग नहीं पड़ते हैं। एक ही जतन है, साक्षी बने रहना।
तुम मंद चलो! ध्वनि के खतरों बिखरे मग में तुम मंद चलो! सूझों का पहन कलेवर-सा बिकलाई का कल जेवर-सा घुल-घुल आंखों के पानी में फिर छलक-छलक बन छंद चलो पर मंद चलो!
ज्ञानी धीमे – धीमे चलता। क्योंकि होशपूर्वक चलता। ज्ञानी दौड़ता नहीं। ज्ञानी के जीवन में कोई आपाधापी नहीं है। कहीं पहुंचना थोड़े ही है कि दौड़ करे वहां तो है ही जहां पहुंचना है। वहीं तो है, जहां पहुंचना है। इसलिए मंद-मंद चलता, इसीलिए तो उसे धीर कहते हैं। परम धैर्य है उसके जीवन में।
तुम मंद चलो! ध्वनि के खतरों बिखरे मग में तुम मंद चलो!
कहीं दौड्धाप में, कहीं आपाधापी में उलझ मत जाना। कर्ता मत बन जाना। यहां बड़े खतरे हैं। खतरे दो ही हैं, कर्ता और भोक्ता बन जाने के। सुरक्षा एक ही है-साक्षी की।
तुम मंद चलो! सूझों का पहन कलेवर-सा