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है।
'ज्ञानी चितासहित भी चितारहित है।'
कभी अगर चिंता करने का कारण आ जाए, तो चिंता करता है, लेकिन फिर भी किसी गहरे तल में चिंता के पार खड़ा रहता है। तुम अगर उसे सवाल दे दो हल करने को तो वह हल करने की कोशिश करेगा, लेकिन उस कोशिश में डूब नहीं जाता, भूल नहीं जाता, भटक नहीं जाता, स्मृति नहीं खोती। अगर एक ज्ञानी जंगल में भटक जाए, तो रास्ता तो रब्रोजेगा न ! चिंता तो करेगा कि बाएं जाऊं, कि दाएं जाऊं? यहां जाने से निकल पाऊंगा बाहर कि यहां जाने से निकल पाऊंगा? लेकिन फिर भी निश्चित होगा, चिंता में भी निश्चित होगा । चिंता चलती रहेगी और भीतर कोई भी डांवाडोल न होगा। अकंप।
'इद्रियसहित भी इद्रियरहित है। '
आखिर शान की भी इंद्रिया हैं। आख है। लेकिन ज्ञानी यह जानता है कि आख देखती नहीं, देखता कोई और है। कान हैं। लेकिन ज्ञानी जानता है कान सुनता नहीं, सुनता कोई और है। तो खिड़की है, जिस पर भीतर का सुननेवाला बैठा है। आख तो खिड़की है, जिस पर भीतर झा वाला बैठा है। तब सारी इंद्रियां द्वार हो जाती हैं। द्वार की तरह इंद्रियां सुंदर हैं। लेकिन जब भीतर का मालिक इंद्रियों में खो जाता है और जो द्वार होने चाहिए, वे दीवार हो जाती हैं, और जिन्हें गुलाम होना चाहिए वे सिंहासन पर विराजमान हो जाती हैं, तब भूल-चूक हो जाती है। शानी प्रत्येक चीज को उसके स्थान पर रख देता है। जो जहां है, वहां है। आख आख की जगह है, कान कान की जगह है। न तो कान मालिक है, न आख मालिक है। मालिक भीतर बैठा है। भीतर, बहुत गहरे भीतर बैठा है, जहां इंद्रियों की कोई पहुंच नहीं है। जहां तुम आख से देखना चाहो तो देख न सकोगे, क्योंकि इंद्रियों के पीछे बैठा है मालिक। इंद्रिया बाहर देखती हैं, मालिक भीतर है।
'इंद्रियसहित भी इंद्रियरहित है, बुद्धिसहित भी बुद्धिरहित है।
ज्ञानी कोई बुद्ध नहीं है। कोई मूढ़ नहीं है। जब जरूरत होती है, बुद्धि का उपयोग करता है, जैसे जरूरत होती है तो पैर का उपयोग करता है। जब जरूरत होती है, तर्क का उपयोग करता है। जब जरूरत होती है तो ज्ञानी विवाद कर सकता है। वस्तुतः ज्ञानी ही विवाद कर सकता है। क्योंकि बुद्धि एक उपकरण मात्र है। और वह मालिक की तरह बुद्धि को अपने हाथ में खेल की तरह, खिलौने की तरह उपयोग कर लेता है। बुद्धि एक कंप्यूटर है। लेकिन ज्ञानी बुद्धि के साथ अपने को तादात्म्य नहीं किये है।
'बुद्धिसहित भी बुद्धिरहित है और अहकारसहित भी निर - अहंकारी । '
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शानी भी तो मैं शब्द का उपयोग करता है। शायद अज्ञानी से ज्यादा बलपूर्वक करता है। अज्ञानी क्या खाक करेंगे! अज्ञानी तो डरते-डरते करते हैं, घबडाए - घबडाए करते हैं। मैं कहते हैं तो कंपते - कंपते कहते हैं। कृष्ण को सुनो. 'सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं वज।' कहा अर्जुन से, छोड़-छाड़ सब बकवास, धर्म इत्यादि, मेरी शरण आ । यह कोई ज्ञानी ही कह सकता है। मेरी शरण आत्र: मामेकं