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मेरी! फरीद ने कहा, उत्तर दिया है। एक बात पूछनी है, जब मैं तुझे पानी के नीचे दबाए था तो कितने विचार तेरे मन में थे? उसने कहा, खाक विचार, एक ही विचार था कि कैसे छूटें? कैसे श्वास मिले?
और यह भी थोड़ी दूर तक ही विचार रहा, फिर तो यह भी विचार नहीं रहा, यह तो प्राण-प्राण की प्यास हो गयी, सब विचार खो गये, बस छूटने का एक उपक्रम रहा। एकदम ध्यान लग गया।
फरीद ने कहा, बस ऐसा जिस दिन परमात्मा को पाने में ध्यान लगेगा, उस दिन परमात्मा मिल जाएगा। और देखा तूने ध्यान से कैसी ताकत आती है! मैं तुझसे दुगुना वजनी, मुझे उठाकर तूने फेंक दिया!
एक कुत्ता अपने पड़ोसी कुत्तों में बड़ी डीग मारा करता था जैसे कि सभी मारा करते है कि मुझसे ज्यादा तेज दौड़ने वाला कोई कुत्ता है ही नहीं दुनिया में। ये ओलंपिक वगैरह कुछ भी नहीं। वह तो कुत्तों को देते नहीं प्रतियोगिता में मौका नहीं तो सबको हराकर रख दूं। जानते थे पड़ोस के कुत्ते भी कि है तो वह मजबूत, दौड़ता भी तेज है। लेकिन एक दिन ऐसा हुआ एक खरगोश निकल गया और उन्होंने कहा देखो, चूको मत मौका। और वह तो मजबूत कुत्ता जो था वह भागा उस खरगोश के पीछे। लेकिन खरगोश ने भी गजब की दौड़ मारी। एक छलांग में, एक हवा में, एक तेज बिजली की कौंध की तरह खरगोश निकल गया और कुत्ता खड़ा रह गया। बाकी कुत्तों ने कहा, कहो महाराज, तुम तो ओलंपिक में भर्ती होने की सोचते थे! उसने कहा भई, यह भी तो विचारों, वह अपने प्राणों के लिए दौड़ रहा था, मैं केवल नाश्ते के लिए। फर्क भी तो सोचो! मेरी आकांक्षा तो कुल नाश्ते की थी, उसके प्राणों का सवाल था। तो दौड़ तो बराबर नहीं थी। मिल जाता तो ठीक, नहीं मिला तो कोई बात नहीं। उसके लिए तो मामला इतना आसान नहीं था।
वैसी हालत फरीद के नीचे हुई होगी उस दिन उस आदमी की, दुबले-पतले आदमी की। फरीद तो ऐसा उत्तर ही दे रहे थे, कोई बड़ा भारी मामला नहीं था, उनके लिए कोई प्राणों पर बन नहीं आयी थी, लेकिन उस आदमी के तो प्राणों पर संकट था। उसने दुगुने मजबूत आदमी को फेंक दिया।
फरीद ने कहा, देखी ध्यान की ताकत? एकाग्रता में बड़ी शक्ति है। और अभी तो तुम्हारी एकाग्रता का सारा उपयोग वासना कर रही है। अभी तो तुम्हारा ध्यान वहीं लग जाता है जहां तुम्हारी वासना का तीर होता है।
इस सूत्र को समझो अब: सर्वत्रानवधानस्य।
जिस व्यक्ति ने अपनी सारी वासनाओं से मुक्ति पा ली, अब उसका ध्यान कहां लगे? अब तो ध्यान लगने की कोई जगह न रही। अब तो पाने को ही कुछ न रहा, तो ध्यान कहां जाए! अब उसकी कोई एकाग्रता नहीं, कोई कनसन्ट्रेशन नहीं, क्योंकि सब एकाग्रता वासना की छाया है। खयाल रखना, अष्टावक्र कहते हैं, परमात्मा को पाने की वासना भी वासना है और मोक्ष को पाने की वासना भी वासना है। जब तक वासना है तब तक ध्यान है, जब वासना ही नहीं तब ध्यान कैसा!
तो दो शब्द हैं अंग्रेजी में. कनसन्ट्रेशन और सेटरिंग। कनसन्ट्रेशन-एकाग्रता। और सेंटरिंग का