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होगा कि उस शब्द को वैसा का वैसा रखेंगे तो कहीं भूल-चूक तो न हो जाएगी। शब्द है. सर्वत्र अनवधानस्य। अनवधान का अर्थ होता है, ध्यान से मुक्त हो जाना। अवधान का अर्थ होता है, ध्यान । अनवधान का अर्थ होता है, ध्यान से मुक्ति। जो सर्वत्र ध्यान से मुक्त हो गया है, यह है संस्कृत का मूल शब्द। इससे डर लगा होगा अनुवाद करनेवाले को कि अगर ऐसा कहें कि जो सर्वत्र ध्यान से मुक्त हो गया, तो यह तो बड़ी गड़बड़ हो जाएगी। इसलिए उसको उदासीन कर दिया।
समझो ।
मगर बात संस्कृत शब्द में और भी गहरी है । उदासीन होना उसका एक अंगमात्र है। ध्यान का अर्थ ही क्या होता है? ध्यान से अर्थ, एकाग्रता । ध्यान से अर्थ कनसंट्रेशन है यहां। तुम ध्यान कब देते हो? तुम ध्यान तभी देते हो जब वासना से चित्त भरा होता है। एक स्त्री जा रही है, सुंदर है स्त्री और तुम एकदम ध्यानमग्न हो गये। अनवधान मुश्किल है, अवधान हो गया। अब तुम लाख उपाय करो मन यहां-वहां नहीं जाता, एकदम बंध गया । जा रहे थे कहीं और चल पड़े स्त्री के पीछे। वह जिस दुकान में सामान खरीदने गयी वहा तुम भी पहुंच गये नहीं खरीदना था तो भी कुछ खरीदने लगे। यह तुम्हारा अवधान है।
तुमने खयाल किया, अगर क्रोध मन में हो तो बड़ा अवधान लग जाता है। सब भूल जाता है संसार, कैसे मार डालें इस आदमी को, कैसे खतम कर दें, इस पर ऐसा ध्यान लग जाता है जिसका हिसाब नहीं। महावीर ने तो इसलिए ध्यान के चार रूप बताए, उसमें दो रूप हैं - आर्त, रौद्र ध्यान। महावीर ने कहा, कुछ लोग हैं, जो दुख में ही ध्यान को उपलब्ध होते हैं - आर्त ध्यान। कोई मर गया, तब वे रो रहे हैं छाती पीट कर । तो अब सारी दुनिया भूल जाती है उनको, बड़े ध्यानमग्न हो जाते हैं, वह एक ही काम में से रहे हैं छाती पीटकर । या किसी ने गाली दे दी। तब वह रौद्ररूप प्रगट होता है उनका। खींच ली तलवार । उस वक्त संसार भूल गया। एक चीज पर एकाग्र हो गये । खयाल करना, जहां वासना होती है वहीं एकाग्रता होती है। इसीलिए तो तुम भगवान पर ध्यान कर बैठते हो लेकिन ध्यान नहीं लगता। बैठते भगवान पर ध्यान करने, ध्यान दुकान पर जाता । जाएगा वहा जहां वासना है। ध्यान तो वासना का अनुगामी है।
फरीद से किसी ने पूछा कि मैं प्रभु को कैसे पाऊं? तुमने कैसे पाया? तो फरीद ने कहा, तू आ, ये नदी स्नान करने जा रहा हूं, तुझे वहीं बता दूंगा। स्नान करने में बता दूंगा। वह आदमी थोड़ा डरा भी कि यह आदमी थोड़ा झक्की है या पागल ! हम पूछते हैं कि परमात्मा कैसे पाना और यह कह रहा है कि स्नान करने में स्नान से इसका क्या लेना-देना! पर होगा कुछ मतलब, रहस्यवादी है, चलो। वह चल पड़ा, उसे पता नहीं। जब वह दोनों स्नान करने बैठे तो फरीद एकदम झपटा और उसको पानी के भीतर दबा लिया। फरीद था तगड़ा फकीर । वह आदमी किलबिलाने लगा, मगर वह उसको छोड़े नहीं, वह उसको दबाए नीचे पानी में! आदमी तो दुबला-पतला था, लेकिन जब ऐसी हालत आ जाए तो दुबले-पतले में भी बल आ जाता है। आखिर उसने एक हुंकार मारी एक धक्का देकर वह उठ आया और उसने कहा कि तुम, हम तो सोचते थे कि संत आदमी हो, तुम क्या जान लागे