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एक विचार-तरंग नहीं उठती। कुछ क्षणों को तो मन एकदम स्तब्ध रह जाएगा। तुम करके देखना जो मैं कह रहा हूं। आज ही करके देखना। कुछ क्षण को तो मन बिलकुल स्तब्ध रह जाएगा। क्योंकि उस घड़ी में साक्षी बहुत सघन होगा ताजा-ताजा होगा। साक्षी के सामने मन कभी खड़ा हो पाया? साक्षी की गैरमौजूदगी मन है। जब साक्षी प्रगाढ होता है, तो मन शून्य होता है। जब साक्षी सोया होता है, तब मन खूब खुलकर खेलता है।
देखते नहीं, सुबह जब नींद टूटती है, सपना तत्क्षण बंद हो जाता है। ऐसा थोड़े ही है कि नींद टूट गयी, फिर सपने को पकड़-पकड़ कर बंद करना पड़ता है। कि अब नींद टूट गयी, अब सपने
__ को कहना पड़ता है कि अब तू बंद हो जा। सुबह नींद टूटी, इधर नींद टूटी उधर सपना तिरोहित होने लगा। धुएं की रेखा की तरह खो जाता है। क्या होता है? तुम जागे। तो नींद के कारण जो बन रहा था वह खो गया।
ठीक ऐसी ही घटना अंतर्जागरण में होती है। जैसे ही तुम जागकर बैठे, तुमने कहा मैं बैलूंगा, देखूगा, साक्षी बनता हूं, वैसे ही तुम पाओगे मन गया। मन मूर्छा है। एक तरह का सपना है। इसीलिए तो अष्टावक्र कहते हैं, सारा संसार सपना है। और इस संसार का मूल आधार तुम्हारे मन में है। तुम्हारे मन में सपने का मूल आधार है। सोए-सोए तुमने जो देखा है, वही संसार है। जागकर देखोगे तो परमात्मा के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है।
तो बैठकर क्षण भर को, सब ऊर्जा इकट्ठी करके, संग्रहीत करके, संगठित करके, एक प्रगाढ़ चैतन्य बनकर- थोड़ी ही देर रह पाओगे तुम उतनी प्रगाढ़ता में, क्षण, दो क्षण-मगर उन दो क्षण में भी स्वाद आ जाएगा। ज्यादा देर न टिकेगी यह प्रगाढ़ता, क्योंकि तुम्हें इसका अभ्यास नहीं है, तुम्हें अभ्यास तो सोने का है, दो क्षण, तीन क्षण और तुम फिर झपकी खाने लगोगे। इधर तुमने झपकी खायी, उधर मन उठा, विचार चले। जैसे ही विचार चले, समझ जाना कि झपकी खा गये, यह सपना उठ आया। यह सपना प्रतीक है कि तुम झपकी खा गये, साक्षी खो गया। तब फिर एक झटका अपने को देना और कहना कि ठीक, अब मैं फिर बैठता हूं, अब तू फिर चल। जब-जब तुम संभलकर बैठोगे तब-तब तुम पाओगे मन बंद हो जाता है। और जब-जब तुम होश खो दोगे तब-तब तुम पाओगे मन फिर शुरू हो जाता है।
विश्लेषण किसका करोगे? साक्षी के सामने तो मन होता ही नहीं, विश्लेषण किसका करेगा? टेबल पर मरीज ही नहीं रहता, एकदम नदारद हो जाता है। जैसे ही साक्षी खोया, वैसे ही मरीज।
__इसे ऐसा समझो, तुम जब सोए हुए हो तो तुम्हारे उस सोएपन का नाम मन है। तुम जब जागे हुए हो, तब तुम्हारे जागेपन का नाम साक्षी है। ऐसा समझो कि जब तुम जागे हो, तब तुम सर्जन और जब तुम सोए हो, तुम मरीज। मरीज की तरह तुम्हीं लेटते टेबल पर आपरेशन की प्रतीक्षा करते, लेकिन तब सर्जन नहीं रहता। यहां दो तो हैं नहीं। तो बैठा है मरीज, लेटा है और रास्ता देखता है, सर्जन नहीं है। जब विचार होता है, तो द्रष्टा नहीं होता। और जब सर्जन मौजूद होता है, द्रष्टा होता है तो मरीज नहीं होता, विचार नहीं होता। विश्लेषण करोगे किसका? विश्लेषण तो तब हो सकता