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मत समझ लेना कि मैं यह कह रहा हूं कि जो शूद्र के घर में पैदा हुआ उसका सौभाग्य नहीं उससे भी मैं कहता हूं, तेरा भी सौभाग्य है। तेरा सौभाग्य यह कि बचा उपद्रव से पंडितों के। कि बचा जाल से सिद्धातों –शास्त्रों के। कोरा-का-कोरा है, तेरा बड़ा सौभाग्य है। तू इसका फायदा उठा ले| जब मैं कह रहा हूं सौभाग्य तो मैं तुलनात्मक रूप से नहीं कह रहा हूं, मैं तो हर एक आदमी को सौभाग्यशाली मानता हूं। जो जहां है, जैसा है। किसी ने गाली दी तो सौभाग्य, क्योंकि उसने एक अवसर दिया,
अगर तुम क्रोध न करो तो तुम्हारे जीवन में बड़ी गरिमा आ जाए जिसने स्वागत किया तुम्हारा, स्वागत हुआ तो सौभाग्या क्योंकि स्वागत में अगर तुम अहंकारी न बनो तो तुम्हारे जीवन में वास्तविक गौरव का जन्म हो जाए।
तिब्बत में एक बहुत अदभुत संत अतीसा के सूत्र हैं उसमें एक सूत्र है कि हर जहर को अमृत बनाया जा सकता है। और हर बुराई, हर काटा फूल बन सकती है। दृष्टि पर निर्भर है।
तो ब्राह्मण होना कुछ ऐसा बुरा तो नहीं। इससे उलझन मत खड़ी करो। लिखते हो कि 'झुकने की आदत नहीं है और अब चाहता हूं कि जो भी आदत बाधा बन रही है इससे कैसे छुटकारा हो? आप कुछ प्रकाश डालें।'
झुकने की आदत नहीं है, तो धीरे - धीरे झुकना शुरू करो तैरने की आदत नहीं तो आदमी क्या करता है? धीरे-धीरे तैरना शुरू करता है। पहले उथले पानी में तैरता, फिर थोड़े और गहरे में जाता फिर और थोड़े गहरे में जाता, फिर अतल में चला जाता, फिर कोई डर नहीं। फिर कितनी ही गहराई हो। आदत नहीं है झुकने की तो धीरे - धीरे अभ्यास करो। जहां से बन सके वहां से झुको।
इस देश में हमने ऐसी व्यवस्था की थी कि झुकने की आदत बनी रहे। तो कुछ हमने नियम बना दिये थे। हर बेटा बाप के चरण छुए। वह झुकने की आदत थी। हर बाप चरण छूने योग्य होता नहीं। वह तो सिर्फ उथले पानी में अभ्यास करवा रहे हैं कि चल, कुछ नहीं बनता, इतना तो बन सकता है यही कर। हर बेटा मां के चरण छुए। गुरु के चरण छुए। जो औपचारिक गुरु हैं उनके भी चरण छुए-गणित जिन्होंने सिखाया., भूगोल सिखायी, उनके भी चरण छुए। कोई मतलब नहीं है इसमें लेकिन मतलब है। मतलब इतना ही है कि अभ्यास बना रहे। तो किसी दिन अगर किन्हीं ऐसे चरणों के करीब आने का भाग्य आ जाए जहां झुकने में अर्थ हो, तो ऐसा न हो कि तुम अकड़े ही खड़े रह जाओ आदत के न होने से। झुकने की आदत.।
___ तो झुको। जहां से बन सके वहां झुको, जैसे बन सके वैसे झुको। अगर आदमियों के सामने झुकने में अड़चन हो तो हमने उसकी भी व्यवस्था की थी। पीपल का झाडू है, उसी के सामने झको देवता। गंगा नदी है, उसी के सामने झुको। पहाड़, उसी के सामने झुको। कहीं भी झुको अभ्यास करो। तुम्हारी रीढ़ थोड़ा झुकना सीख जाए।
और अभ्यास का परिणाम क्या होता है? जब तुम झुकोगे, तब किसी दिन झुके में तुम पाओगे कि जो मिला, वह अकडू कर कभी नहीं मिला। उससे रस बढ़ेगा। कभी तुम देखो, जाकर किसी वृक्ष के पास ही झुक कर सिर रखकर बैठ जाओ, तुम बड़े हैरान हो जाओगे, अपूर्व शाति का अनुभव होगा।