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है। और उससे पूछा, तो उसने कहा, कुछ नहीं, मैं प्रसिद्ध होना चाहता था । और वह प्रसिद्ध हो गया । अब तुम देखते हो, मुझे भी उसका नाम मालूम है। नहीं तो रॉबर्ट रिप्ले का नाम मालूम होने का मुझे कोई कारण नहीं है। उसने कुछ और किया ही नहीं सिवाय इसके।
मगर फिर उसने ऐसी कई बातें कीं, जब उसको एक दफा तरकीब हाथ लग गयी। तो कई बातें कीं। उसने एक बड़ा दर्पण अपने सामने बांध लिया और उल्टा चलकर पूरे अमरीका की यात्रा की। दर्पण सामने, दर्पण में देखे पीछे का रास्ता और चले उल्टा। वह बड़ा प्रसिद्ध हो गया। जब वह मरने के करीब था, तो उसने अपने प्रेस एजेंट को कहा- अब तो उसकी बडी ख्याति हो गयी थी, उसके पास प्रेस एजेंट और सब व्यवस्था थी और कुल काम उसका इसी तरह का था, कुछ उल्टा-सीधा करना - उसने अपने प्रेस एजेंट को कहा कि खबर कर दो, रिप्ले मर गया । पर उसने कहा कि अभी तुम जिंदा हो। उसने कहा मैं अपनी अखबार में खबर पढ़ना चाहता हूं मरने की। मर तो मैं जाऊंगा, डॉक्टर कहते हैं चौबीस घंटे से ज्यादा जी नहीं सकता। तो मैं आखिरी काम यह करना चाहता हूं कि मैं देखना चाहता हूं, अखबार मेरे मरने के बाद मेरे संबंध में क्या लिखेंगे। प्रशंसा करेंगे, निंदा करेंगे, एडीटोरियल लिखे जाएंगे कि नहीं, कौन क्या कहेगा? राजनेता बोलते कि नहीं, क्या होता है? वह मैं देखना चाहता हू। और मैं आखिरी खबर भी दुनिया में पैदा करना चाहता हूं वह मैं तुम्हें पीछे बताऊंगा तुम अभी तो सूचना कर दो।
अखबारों को खबर दे दी गयी, सब अखबार छप गये, फोटो छप गये कि रिप्ले मर गया । और शाम को उसने अखबार पढ़े, अखबार बढ़ते हुए फोटे उतरवायी - अपने मरने की खबर पढ़ते हुए रॉबर्ट रिप्ले| और उसने दूसरी खबर दी कि अब दूसरी खबर दे दो कि रॉबर्ट रिप्ले मनुष्य जाति का पहला आदमी जिसने अपने मरने की खबर खुद पढ़ी। पड़ेगा भी कोई कैसे! तब मरा। यह आखिरी खबर दुनिया में छपवाकर मरा ।
जब बर्नार्ड शॉ को नोबल प्राइज मिली तो उसने इनकार कर दिया। पहले तो नोबल प्राइज मिली, इसकी खबर छपी, सारे दुनिया के अखबारों में। फिर उसने इनकार कर दिया, इसकी खबर छपी। वह दुनिया का पहला आदमी था जिसने नोबल प्राइज इनकार किया। और बड़ी खबर छपी। कि ऐसा तो कभी हुआ नहीं| कोई नोबल प्राइज इनकार करता है! और उसने जो वक्तव्य दिया, उसमें कहा कि अब मैं का हो गया, जब मैं जवान था तब मिलती तो मुझे कुछ सुख होता| अब तो किन्हीं बच्चों को दो! अब तो मैं उस जगह के पार आ गया, जहां नोबल प्राइज का कोई मतलब नहीं होता। यह शान बतायी उसने ! यह छपी। यह तो सम्राट का अपमान है, स्वीडन के सम्राट का । उसकी तरफ से सम्मान मिलता है नोबल प्राइज का, कभी किसी ने इनकार किया नहीं था, यह पहला ही उपद्रव खड़ा हुआ| सारी दुनिया से दबाव डाला गया, इंग्लैंड के राजा ने दबाव डाला और बड़े - बड़े राजनेताओं ने दबाव डाला कि स्वीकार करो, यह तो अपमान है। चाहे स्वीकार करके फिर तुम दान कर देना यह धनराशि |
तो इस बड़े दबाव में, बड़ी मजबूरी में उसने स्वीकार किया, अब अखबारों में खबर छपी कि