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मिट्टी में खुद ही मिल गये, तो अब संगमरमर की भी मजार हो तो क्या सार है! खुद ही न बचे, तो अब और कुछ बचने का अर्थ भी क्या होता है!
तम मौत को सदा कसौटी समझो। जो मौत तमसे न छीन सके, वही बचाने योग्य है। जो मौत छीन ले. वह छोड देने योग्य है। मौत को तुम ऐसे उपयोग करो जैसा तुमने देखा हो, सराफ सोने को कसने को एक पत्थर रखे रहता है। उस पत्थर पर सोने को कसकर देख लेता है -सोना है या नहीं? कसौटी। मौत कसौटी है। तो मौत के पत्थर पर हर चीज कसकर देखते रहो। तुम पाओगे कि सिवाय संन्यास के, ध्यान के, साक्षी के और कुछ मौत की परीक्षा पर उतरता नहीं। वही सिर्फ खरा सोना सिद्ध होता है। और तब मौत एक नया अनुभव बनती है। तब मौत मोक्ष बन जाती है।
हिचकी का तार टूट चुका रूह अब कहां जंजीर खुलके गिर पड़ी दीवाना छूट गया
अगर तुमने अपने को शरीर के साथ एक समझा, मन के साथ एक समझा, तो तुम भी, लगेगा तुम्हें कि मर गये। अगर तुमने समझा कि तुम शरीर और मन के पार हो, साक्षी हो, तो तुम पाओगे. सांस की जंजीर टूट गयी और दीवाना मुक्त हो गया। वह जो भीतर छिपा था, वह मौत से नष्ट नहीं हुआ, मुक्त हुआ मौत तब मोक्ष बनकर आती है।
लेकिन मौत को समझने की कीमिया संन्यास है। उसको समझने का रसायन संन्यास है। संन्यास का इतना ही अर्थ होता है -सम्यक न्यास। ठीक-ठीक त्याग। किस बात को ठीक-ठीक त्याग कहते हैं? जो मौत छीन लेगी, उसके त्याग को ठीक त्याग कहते हैं। जो मौत नहीं छीनेगी, उसके भोग को ठीक भोग कहते हैं। संन्यास का अर्थ होता है, ठीक-ठीक का त्याग, ठीक -ठीक का भोग। और मौत कसौटी है। और तब
अहबाब के काधे से लहद में उतर आए किस चैन से सोए हुए हम अपने घर आए
और तब मौत दुश्मन नहीं मालूम होती है। किस चैन से सोए हुए हम अपने घर आए
तब मौत तो घर आना है। अपने परम विश्राम की अवस्था में आना है। पर उसके पहले संन्यास की अपूर्व घटना से गुजरना जरूरी है।
संन्यास का अर्थ होता है, स्वेच्छा से वरण की गयी मृत्यु। इसलिए पुराने दिनों में जब संन्यास देते थे, तो आदमी का सिर घोंट देते थे जैसे मुर्दे का घोंट देते हैं। नहा-धोकर उसके कपड़े बदल देते थे, जैसे मुर्दे के बदल देते हैं। उसका नाम बदल देते थे, क्योंकि वह पुराना आदमी तो मर गया। और प्रतीकरूप में उसे चिता पर चढ़ाते थे। चिता सजा देते थे, उस पर उसे लिटा देते थे, चिता जला देते थे और उसको घोषणा कर देते थे कि पुराना मर चुका, अब तू नया होकर उठ आ। और वह आदमी उठता। फिर वह लौटकर पुराने दिनों की बात नहीं करता था। न पुराने नाम का उपयोग करता था। न पुराने संबंधों की बात करता था। पुराना तो मर गया। वह बात समाप्त हो गयी। यह नये का आविर्भाव