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दिन तुम गिरोगे और मिट्टी में खो जाओगे। मिट्टी से ही पैदा हुए, मिट्टी में ही विसर्जित हो जाओगे। इसलिए सब आत्यंतिक अर्थों में मिट्टी है।
जिसको तुम सोना कहते हो, वह भी मिट्टी का ही एक रूप है। जिसको चांदी कहते हो, वह भी मिट्टी का ही एक रूप है। तुम्हें जानकर हैरानी होगी, जिसे तुम हीरा कहते हो, वह कोयले का एक रूप है। कोयला ही लाखों वर्ष जमीन में पड़ा पड़ा हीरा बन जाता है। अब कोयले को तो कोई छाती में लटका कर नहीं चलेगा कि कोहनूर है। कितना ही बड़ा कोयला लटका लो, कोई तुमको न कहेगा कि आप बड़े बुद्धिमान हैं। लोग कहेंगे, पागल हो गये हो? माना कि विज्ञान की किताबें कहती हैं कि कोयले और कोहनूर में कोई फर्क नहीं है, सिर्फ समय का फर्क है-लाखों वर्ष तक मिट्टी में दबा रह-रह कर, मिट्टी के दबाव से, रासायनिक प्रक्रियाओं से कोयला ही हीरा बन जाता है लेकिन फिर भी हीरा हीरा है, कोयला कोयला है। तुम कोयले को तो लटका कर न घूमोगे। हीरा मिल जाए तो लटकाओगे। माना कि भेद व्यावहारिक है, लेकिन आत्यंतिक अर्थों में, अल्टीमेट अर्थों में कोई भेद नहीं है। इसको स्मरण रखना। जहां-जहां शास्त्रों में ऐसे वचन आते हैं कि सोना, मिट्टी, पत्थर सब एक, इसका मतलब है-आत्यंतिक अर्थों में एक। व्यावहारिक अर्थों में एक जरा भी नहीं।
'जो ममतारहित है, जिसके लिए मिट्टी, पत्थर और सोना समान है, जिसके हृदय की ग्रंथि टूट गयी है और जिसका रज-तम धुल गया है, वह धीरपुरुष ही शोभता है।'
इन सूत्रों में बार-बार अष्टावक्र उसकी प्रशंसा कर रहे हैं, उस तत्व की जिसकी शोभा है। उस सिंहासन की, जिस पर विराजमान हुए बिना तृप्ति नहीं होगी। वे कहते हैं, आत्यंतिक शोभा किसकी है? गरिमा किसकी है? गौरव किसका है? उसका है, जो ममता से मुक्त हो गया। ममता नीचे ले जाती प्रेम को। जो ममता से मुक्त हो गया, उसका प्रेम ऊपर को जाने लगता। ममता जैसे प्रेम के गले में बंधे हुए पत्थर-चट्टानें हैं। ममता का अर्थ होता है, मेरे हो इसलिए प्रेम करता हूं। मेरे बेटे हो, इसलिए प्रेम करता हूं। कि मेरे पति हो, इसलिए प्रेम, कि मेरी पत्नी हो, इसलिए। मेरे हो, इसलिए। जहां मेरे से प्रेम मुक्त हो गया, वहा फिर तुम यह नहीं कहते कि इसलिए प्रेम करता हूं। तुम कहते हो, प्रेम मेरे भीतर बह रहा है, तुम मौजूद हो, तुम्हें मिल रहा है, कोई और मौजूद होता तो उसे मिलता। कोई न मौजूद होता तो शून्य में बिखरता। जैसे कहीं दूर स्वात में पहाड पर कोई फूल खिले, तो गंध तो बिखरेगी। स्वात में बिखरेगी, कोई राहगीर भी न निकलता होगा तो भी बिखरेगी। ऐसे ही जब तुम्हारा प्रेम ऊपर की तरफ जाना शुरू होता है तो तुम्हारे जीवन में एक सुगंध उठती है, जो बिखरती है। जो भी आ जाए उसको मिल जाती है, कोई न आए तो वह शून्य में बिखरती है। प्रेम तब एक स्थिति है चैतन्य की।
ममता का अर्थ है, प्रेम एक संबंध है। मेरे हो, इसलिए। मेरा होना ज्यादा महत्वपूर्ण है, प्रेम का मूल्य कुछ भी नहीं है। अगर मेरे न रहे तो मैं ही हत्या करने को तैयार हो जाऊंगा। जिस पत्नी के लिए तुम जान दे रहे हो, उसी की जान लेने को कल तैयार हो सकते हो, अगर यह पक्का हो जाए कि मेरी नहीं, किसी और की हो रही है। जिस पति के लिए मर जाते, उसी पति को जहर पिला सकते