________________
वह कल फिर मिट्टी हो जाएगा। फिर मिट्टी से पैदा होगा, फिर मिट्टी में मिलता रहेगा। इसलिए आत्यंतिक अर्थों में तो कोई भेद नहीं है, लेकिन व्यावहारिक अर्थों में तो भेद है।
तमने बीज बोया, मिट्टी में बोया। मिट्टी से बीज फटा, अंकरित हआ और हजार बीज लगो तमने फसल काटी। जिसको तुम गेहूं कहते हो, यह मिट्टी का ही रूपांतरण है। जिसको तुम गेहूं का पौधा कहते हो, इस पौधे ने तुम्हारे लिए एक अदभुत काम कर दिया जो तुम नहीं कर सकते थे। अगर तुम मिट्टी को सीधा खा लो तो खून नहीं बनेगी। लेकिन अब तुम गेहूं को चबाओगे और गेहूं को पचाओगे तो खून बनेगी। इस गेहूं के पौधे ने एक चमत्कार कर दिया इसने मिट्टी में से वे –वे हिस्से छांट दिये, जिनके कारण खून बनने में बाधा पड़ सकती थी। और वे –वे हिस्से चुन लिए, जिनके खून बनने में अब कोई बाधा नहीं है। गेहूं के पौधे का धन्यवाद मानो उसने मिट्टी को तुम्हारे शरीर में पचने योग्य बना दिया। उसने योग्य बना दिया, ताकि अब तुम उसको पचा सको।
__ इसीलिए तो मैं कहता हूं कि सारी प्रकृति जुड़ी है संयुक्त है। अगर गेहूं के पौधे न हों, तुम जीवित न रह जाओ। तो गेहूं के पौधों का आभार तो होना चाहिए गेहूं के पौधे तुम्हारे लिए बड़ा काम कर रहे हैं।
ऐसा ही समझो कि सागर का पानी है, तुम पी लो दिखता तो पानी है लेकिन पी लो तो मर जाओगे। प्यास तो नहीं बुझेगी, प्राण ही चले जाएंगे। सागर का पानी पानी जैसा दिखता है, लेकिन पीया नहीं जा सकता। फिर यही सागर का पानी हजारों मील मिट्टी में से छन-छन कर तुम्हारे कुएं में आ रहा है। तब तुम पी लेते हो, तब कोई हर्जा नहीं है, तब तुम्हारी प्यास बुझ जाती है। वह जो हजारों मील की मिट्टी की परतें हैं, उन्होंने सागर के उन सारे लवण रासायनिक-द्रव्यों को छांट लिया, छान दिया, जिनके कारण मौत घट सकती थी। पानी अब भी पानी है। लेकिन इस मिट्टी ने बड़ा काम कर दिया। इसने सब नमक रोक लिये। जो-जो चीजें तुम्हारे शरीर में घातक हो सकती थीं, वे अलग कर दीं। पानी छन-छन कर, छन-छन कर, शुद्ध हो-होकर तुम्हारे कुएं में आ गया। है सागर का ही पानी, लेकिन अब तुम पी सकते हो।
जो काम कुएं ने किया, वही काम गेहूं के पौधे ने भी किया। उसने मिट्टी को छान-छानकर गेहूं बना दिया। वही काम नाशपाती और नींबू के वृक्ष कर रहे हैं, छान-छानकर। मिट्टी एक है, उसी से नींबू पैदा होता, उसी से नाशपाती पैदा होती, उसी से आम पैदा होता। मिट्टी एक है, लेकिन अलगअलग पौधे अलग-अलग ढंग से छानते हैं। इसलिए अलग-अलग फल पैदा हो जाते हैं। ये फल हैं तो मिट्टी ही, लेकिन फिर भी मैं तुमसे यह न कहूंगा कि मिट्टी खा लो और न अष्टावक्र तुमसे कहेंगे। मिट्टी खायी होती अष्टावक्र ने, तो यह महागीता कभी पैदा न होती। कभी के मिट्टी में मिल
गये होते, ये वचन बोलने के पहले।
नहीं, लेकिन आत्यंतिक अर्थों में तो तुम मिट्टी ही खा रहे हो। चाहे गेहूं? चाहे चावल, चाहे नाशपाती, चाहे अगर, चाहे संतरे, तुम जो भी खा रहे हो, आत्यंतिक अर्थों में तो मिट्टी ही खा रहे हो। क्योंकि है तो यह सब मिट्टी का ही खेल। और मजा तो यह है कि मिट्टी का खेल तुम भी हो। एक