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मैं जिस प्रेम की बात कर रहा हूं वह ऐसा प्रेम है जहां तुम्हें इस सारे अस्तित्व में एक ही प्राण का स्पंदन अनुभव होता है। जहां पत्ते-पत्ते में, जहां कंकड़-कंकड़ में एक ही प्रेम, एक ही ऊर्जा तुम्हें प्रवाहित मालूम होती है और तुम बूंद की तरह इस विराट सागर में डूबने को आतुर हो जाते हो प्रार्थना का यही अर्थ है।
ग्रंथि तोड़नी है हृदय पर, इसलिए यह पहला सूत्र समझो'जो ममतारहित है, जिसके लिए मिट्टी, पत्थर और सोना समान है।'
यह भी खयाल में लेना। इस सूत्र की जो व्याख्याएं की जाती रही हैं, वे बड़ी भ्रांत हैं। जिसके लिए मिट्टी, पत्थर और सोना समान है, इसका तुम यह अर्थ मत समझ लेना कि अगर ज्ञानी के सामने तुम सोना रखो तो उसे सोना दिखायी नहीं पड़ेगा और मिट्टी दिखायी पड़ेगी। ऐसा मत समझ लेना अर्थ। सोना सोना दिखायी पड़ेगा, मिट्टी मिट्टी दिखायी पड़ेगी, पत्थर पत्थर दिखायी पड़ेगा, पर तीनों के मूल्य में कोई भेद नहीं है। अगर किसी ज्ञानी को सोना सोना न दिखायी पड़े और मिट्टी दिखायी पड़े तो यह तो भ्रांति हुई। यह कोई जागरण न हुआ| जागरण में तो भेद और स्पष्ट हो जाएंगे। सोना सोना दिखायी पड़ेगा, मिट्टी मिट्टी दिखायी पडेगी, लेकिन मूल्य-भेद समाप्त हो जाएगा। कि मिट्टी का कोई मूल्य नहीं है और सोने का मूल्य है, ऐसा भेद समाप्त हो जाएगा। मूल्य मनुष्य आरोपित
तुम ऐसा सोचो कि कोई मनुष्य पृथ्वी पर न रहा, मिट्टी का ढेर लगा है और सोने का ढेर लगा है, सोने का ढेर मूल्यवान होगा? सोना फिर भी सोना होगा, मिट्टी फिर भी मिट्टी होगी, लेकिन अब सोना मूल्यवान नहीं होगा। अब आदमी ही न रहा जो मूल्य देता था, अब आदमी ही न रहा जिसके मन में मूल्य था, तो अब सोने का क्या मूल्य है! मूल्य निर्मूल्य हो गया, मूल्य शून्य हो गया। मिट्टी मिट्टी है, सोना सोना है। आदमी के हटने से न तो मिट्टी सोना हो जाएगी, न सोना मिट्टी हो जाएगा, लेकिन अब मिट्टी और सोने में मूल्य का भेद न रहने से कोई भेद नहीं रह गया।
इस बात को खयाल में रखना। नहीं तो पागलों को लोग परमहंस समझ लेते हैं। जिनको कोई भेद नहीं, ऐसा समझ लेते हैं। पागलपन और परमहंस में बड़ा बुनियादी अंतर है। परमहंसत्व का तो अर्थ है, मूल्य- भेद नहीं रहा। मूल्य समान हो गये। लेकिन वस्तुओं के गुणधर्म तो भिन्न-भिन्न हैं सो भिन्न-भिन्न रहेंगे।
जब अष्टावक्र कहते हैं, जिसके लिए मिट्टी, पत्थर और सोना समान हैं तो इसका अर्थ है, स्म-मूल्यवान हैं। समान हैं, इसका अर्थ है, आत्यंतिक अर्थों में समान हैं। व्यावहारिक अर्थों में समान नहीं हैं। नहीं तो परमहंस को भूख लगे तो मिट्टी खा ले। ऐसे पागल हैं, जो मिट्टी खा लेते हैं और लोग समझते हैं कि परमहंस हैं। बुद्धों ने ऐसा तो नहीं किया! महावीर के संबंध में ऐसा तो उल्लेख नहीं है! न कृष्ण के संबंध में उल्लेख है कि तुम मिट्टी परोस दो और वे खा लें। तो मिट्टी मिट्टी है, भोजन भोजन है। व्यावहारिक अर्थों में तो भेद है, लेकिन आत्यंतिक अर्थों में भेद नहीं है। क्योंकि आखिर जिसको तुम भोजन कहते हो वह मिट्टी से ही पैदा होता है। जिसको तुम आज भोजन कह रहे हो,