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भी कोई सचेष्ट, आग्रहपूर्वक कोई हठ नहीं है।
'हमारे तथाता के अस्वीकार को स्वीकार में क्यों बदलना चाहते हैं?'
तुम्हारी तरफ से जो दिखायी पड़ रहा है, उसे तुम बुद्धपुरुषों की तरफ से मत थोपना । तुम्हारी तरफ से जो दिखायी पड़ रहा है, वह तुम्हारी दृष्टि है।
झेन फकीरों में कहावत है कि बुद्ध कभी नहीं बोले। बुद्ध चालीस साल बोले, निरंतर बोले और झेन फकीरों में कहावत है कि बुद्ध कभी नहीं बोले | रिझाई से किसी ने पूछा कि यह बात बड़ी अजीब है। ये शास्त्र रखे हैं इसी मंदिर में बुद्ध के वचनों के इतना बोले - और यहीं इन्हीं शास्त्रों को पढ़ते हैं आप, इन्हीं शास्त्रों को नमस्कार भी करते हैं और रोज सुबह आप यह भी कहते हैं कि बुद्ध कभी नहीं बोले | और रिझाई ने कहा कि दोनों बातें सच हैं। बोले भी और नहीं भी बोले। जहां तक हमारा संबंध है, बोले; 'जहां तक उनका संबंध है, नहीं बोले। हमने तो सुना, इसलिए हमने शास्त्र इकट्ठे किये। इसीलिए तो बुद्धपुरुषों ने कुछ लिखा नहीं। फूल सुगंध के संबंध में कुछ लिखते थोड़े ही हैं, सुगंध झरती है, तो झरती है। बुद्धपुरुष बोले। तुम्हारी मौजूदगी में कुछ उनसे झरा तुम्हारी प्यास ने कुछ उनके भीतर से खींच लिया। तुम्हारी आतुरता ने कुछ उनसे बुलवा लिया बोले ऐसा नहीं, बुलवा लिया। सहजस्फूर्त हुआ अपनी तरफ से तो बोले ही नहीं ।
मैं तुमसे रोज बोल रहा हूं और मैं तुमसे कहे देता हूं, भूलकर भी यह मत सोचना कि मैं कभी बोला । तुमने सुना, यह सच । मैं नहीं बोला। इसलिए मेरी कोई आतुरता तो नहीं कि तुम बदल जाओ। मेरे पास लोग आते हैं-क्योंकि इस देश में तो साधु-संतों की बड़ी आतुरता रहती है, महात्मा का मतलब ही यह कि वह सभी के पीछे लगा है कि बदलो। ऐसा खाओ, ऐसा पीओ, यह मत पीओ, यह मत खाओ, इतने बजे सोओ, इतने बजे उठो । महात्मा का तो मतलब ही यह है, जो लाठी लगाकर लोगों के पीछे पड़ा है। और बदल कर रहेगा। महात्मा का तो मतलब ही यह है कि जो तुम्हें चैन से न रहने दे। तुम चाय पीओ तो चाय न पीने दे। काफी पीओ तो काफी न पीने दे। कुछ भी न करने दे। तुम्हें इस तरह बांध दे कि तुम्हारा जीवन दूभर हो जाए। और अगर तुम जीना चाहो तो पाप अनुभव मालूम हो और अगर तुम उनकी मानो तो जीवन खोने लगे। अगर पुण्य करना हो तो मरो, और अगर जीना हो तो पाप हो जाए, ऐसी हालत जो कर दे खड़ी, उसको महात्मा कहते हैं।
तो मेरे पास भी आ जाते हैं भूल से इस तरह के लोग, वे कहते हैं, आप का क्या मामला है? आप लोगों को कुछ कहते ही नहीं! क्या खाना, क्या पीना, कैसा आचरण ? मैं उनसे कहता कि ये लोग जानें। लोगों का आचरण, लोगों की चिंता, वे समझें। मुझे जो हुआ है वह मुझसे झर रहा है। उससे कोई सीख ले, सीख ले। समझ ले । न समझे, न समझे। मैं दोनों हालत में राजी हूं। मेरे मन में जरा भी निंदा नहीं है और जरा भी स्तुति नहीं है। उनको बहुत कठिनाई होती है। क्योंकि वे चाहेंगे, मैं भी लोगों के पीछे पड़ जाऊं, उनको सताऊं, उनको अपराधी सिद्ध करूं। लोगों को लोगों को कष्ट देने में बड़ा रस आता है। तुम्हारे महात्मा बड़े दुखवादी, सैडिस्ट। सताओ लोगों को! जरा भी कहीं रस ले रहे हों, जरा भी हंस रहे हों तो रोक लगा दो। कोई हंस न सके, कोई प्रसन्न न हो सके, सारे जीवन