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बिना रहस्य के भाव के कोई धार्मिक हो कैसे सकता है! धर्म का कोई संबंध गंभीरता से नहीं है। जानकारी से नहीं है। इस दंभ से नहीं है कि मैं जानता हूं।
रहस्य और ज्ञान में बड़ा विपरीत भाव है। ज्ञान का अर्थ है, मैं जानता हूं। रहस्य का अर्थ है, मैं कुछ भी नहीं जानता और इतना अपूर्व भरा है जानने को और मैं कुछ भी नहीं जानता। ज्ञान में दबा हुआ आदमी मुर्दा हो जाता है। कब में समा गया। रहस्य से भरा हुआ आदमी चकित, चौंका हुआ, विस्मय - विमुग्धा सब तरफ रहस्य - ही - रहस्य, काव्य - ही - काव्य, सौंदर्य - ही - सौंदर्य खोलता पर्दै – पर – पर्दे, उठाता धूंघट – पर - चूंघट और हर चूंघट के पार और बूंघट हैं और सुंदर चूंघट हैं।
छठवां प्रश्न :
आपने कहा कि बद्धपुरुष सर्वशः तथाता में जीते हैं। यानी जगत जैसा है वैसा ही उन्हें स्वीकार है। वे उससे रत्तीभर भी अन्यथा नहीं चाहते। यदि ऐसा है, तो वे हम लोगों को उपदेश क्यों करते हैं? हमें दिन-रात समझाते क्यों हैं? वे हमारे तथाता के अस्वीकार को स्वीकार में क्यों बदलना चाहते हैं? और उनकी यह चेष्टा उन्हें अ -तथाता में नहीं ले जाती?
प्रश्न महत्वपूर्ण है, समझने जैसा है। पहली बात, बुद्धपुरुष उपदेश देते हैं, ऐसा तुमने समझा तो गलत समझा। बुद्धपुरुष से उपदेश होता है। देते हैं, ऐसा सोचा तो गलत सोच लिया। फिर भूल हो गयी। देते हों अगर, तब तो फिर तथाता के बाहर हो गये वे, अ-तथाता शुरू हो गयी। उपदेश देने का तो मतलब यह हुआ कि उनका आग्रह है कुछ कि ऐसा होना चाहिए उपदेश देने का तो अर्थ यह हुआ कि अगर तुमने न माना तो वे दुखी होंगे और तुमने माना तो सुखी होंगे नहीं, उपदेश उनसे होता है।
बुद्धपुरुषों ने कभी भी उपदेश नहीं दिया हुआ है। महावीर के संबंध में जैनों ने बड़ी ठीक बात कही है : उनसे वाणी झरी। यह ठीक बात है। कही नहीं गयी, झरी। जैसे वृक्ष से फूल झरते हैं। या फूल से सुगंध झरती है। या दीये से रोशनी झरती है। या बादल से जल झरता है। ऐसी झरी। जो भीतर सघन हो गया है, वह अभिव्यक्त होगा। उपदेश देते, तो तुम चूक गये| उपदेश हुआ।
उपदेश देते हैं उपदेष्टा, उपदेश होता है बुद्धपुरुषों से बुद्धपुरुष उपदेश देते नहीं। अगर बुद्धपुरुष उपदेश को रोकें, तो तथाता के बाहर होंगे। अगर वे चेष्टा करके न दें, तो चूक होगी। इसलिए जो होता है, होता है। उपदेश होता है तो उपदेश होता है। अगर नहीं होगा तो नहीं होगा। कभी-कभी ऐसा भी हुआ कि बुद्धपुरुष चुप रह गये मेहर बाबा पूरे जीवन चुप रहे। चुप्पी आयी तो चुप्पी| बोलना हुआ