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पता नहीं कि हम कौन हैं तो परमात्मा को क्या खाक खोजें! कहां खोजें? अभी अपने को ही नहीं पा सके तो और को क्या पा सकेंगे? अपनी ही तो सुध नहीं है और परमात्मा की यात्रा पर चले! पहले होश में तो आ जाओ।
जैसे कोई शराबी आदमी डावांडोल होता चल रहा है और किसी से पूछता है कि परमात्मा को खोजना है, कहां है? तो तुम क्या कहोगे? कि बड़े मियां! पहले जरा होश तो लाओ। हाथ-पैर तो कहां के कहां पड़ रहे हैं। कहीं रखते हो, कहीं जा रहे हैं। और परमात्मा को खोजने निकले इस हालत में? अच्छी- भली हालत में नहीं मिलता, इस हालत में मिलेगा? पहले होश तो सम्हालो थोड़ा। जरा अपने होश में तो आओ, फिर खोजना परमात्मा को ।
बाहर की दुनिया में यह जवाब बिलकुल ठीक है, लेकिन भीतर की दुनिया में वे ही पहुंचते हैं जो लड़खड़ाते हैं, शराबी की तरह चलते हैं। पानी लग गई आगी !
एक पांव इधर रखते हैं, दूसरा उधर पड़ता है। जाते उत्तर हैं, पहुंच पूरब जाते हैं ऐसे लोग पहुंचते हैं| मतवाले पहुंचते हैं, दीवाने पहुंचते हैं, पागल पहुंचते हैं, मस्त पहुंचते हैं।
मैंने सुना है, एक आदमी रोज-रोज नदी के किनारे जाकर घूमने के लिए जाता था सुबह - सुबह ब्रह्ममुहूर्त में रोज-रोज आता देखकर जो मछलियों की रानी थी वह उसे पहचानने लगी थी। लेकिन मछली तो पानी में थी, आदमी नदी के किनारे टहलता था। पानी में तो उल्टी छाया बनती है, प्रतिबिंब तो उल्टा बनता है।
तुम जब दर्पण में खड़े होते हो तब तुम्हें याद नहीं रहती लेकिन प्रतिबिंब उल्टा बन रहा है। तुम वैसे ही थोड़े दिखाई पड़ रहे हो, जैसे हो; उससे उल्टे बन रहे हो । नहीं हो तो किताब का पन्ना सामने रखकर दर्पण के देखना तब तुमको समझ में आ जायेगा। सब अक्षर उल्टे हो गये। वह तो तुम रोज खडे होते हो तो आदत हो गई है, तो तुमको खयाल में नहीं आता कि बायां दायां दिख रहा है, दायां बांया दिख रहा है। रोज की आदत है। किताब का पन्ना सामने करना दर्पण के तत्काल समझ में आ जायेगा कि सब उल्टा हो जाता है।
तो मछली तो पानी में से देखती थी प्रतिफलन । तो उसको दिखाई पड़ता था आदमी का सिर नीचे, पैर ऊपर। स्वभावतः मछली की अकल और मछली का अनुभव भी यही था । पानी के ऊपर तो उसने कभी आकर देखा नहीं था। इस आदमी के डर के मारे आती भी नहीं थी, और नीचे सरक जाती थी। मानती थी कि यही आदमी के होने का ढंग है कि सिर नीचे, पैर ऊपर। और ऐसा ही उसने शास्त्रों में भी पढ़ा था। मछलियों के लिखे शास्त्र ! उन्होंने भी ऐसा ही आदमी देखा था।
लेकिन एक दिन इस आदमी को योग का शौक चढ़ा और यह शीर्षासन करने लगा वहीं नदी के किनारे। जब इसने शीर्षासन किया तो मछली बड़ी चिंतित हुई कि इस आदमी को क्या हो गया ? क्योंकि नीचे उसने पानी में देखा कि सिर ऊपर और पैर नीचे। यह तो बात गड़बड़ हो गई। क्या यह आदमी शीर्षासन कर रहा है? आज पहली दफा उसे आदमी वैसा दिखाई पड़ा था जैसा वस्तुतः आदमी होता है। मगर उनके हिसाब से तो गड़बड़ हो रही थी सब बात। कि आदमी को हो क्या गया है? दिमाग