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चल रही हैं। एक चींटी ने दूसरी से कहा कि अजीब पहाड़ी पर आ गये हैं हम भी। न घास-पात ऊगता-होगा कोई क्लीन शेव! -न घास-पात ऊगता, न कोई वृक्ष दृष्टिगोचर होते, न कोई झीलझरने। किस पहाड़ पर आ गये हैं! बिलकुल सूखा। और देखते यह चोटी गौरीशंकर की? –नाक होगी-उठती चली गई है, आकाश को छूती मालूम होती है।
ऐसा वे एक-दूसरे से बात करने लगी और बड़ी धन्यभागी होने लगी कि हम चढ़ आये पहाड़ पर। और तीनों धीरे-धीरे नाक पर चढ़ गईं। और इसके पहले कि जैसा हिलेरी ने झंडा गाडा, वे गाड़ती कि उस आदमी को नींद में थोड़ी-सी भनक पड़ी। उसने अपना हाथ फेरा, वे तीनों चींटियां उसकी नाक पर दबकर मर गईं।
जिब्रान की यह कहानी बड़ी महत्वपूर्ण है। ऐसा ही आदमी है। शायद आदमी इससे भी छोटा। चींटी और आदमी के बीच फासला है जरूर, लेकिन आदमी और विराट के बीच का फासला तो सोचो! बहु त विराट है फासला| हम कैसे खोज पायेंगे? ये हमारे छोटे-छोटे पैर नहीं पहुंच पायेंगे। यह तो मंदिर ही चलकर आ जाये तो ही हम प्रवेश कर पायेंगे। और मंदिर चलकर आता है। तुम पुकारो भरा तुम्हारे पुकार के ही कच्चे धागों में बंधा आता है। कच्चे धागे में चले आयेंगे सरकार बंधे। पूनम बन उतरो।
भावों की कोमल पाटी पर शाश्वत रंग भरो।
पूनम बन उतरो। तुम पुकारते रहो। तुम प्यास जाहिर करते रहो। तुम रोओ। तुम गाओ। तुम नाचो। तुम जाहिर कर दो अपनी बात कि हम तेरी प्रतीक्षा में आतुर हैं। कि हम यहां तुझे बुला रहे हैं। तुम्हारी सारी भाव-भंगिमा, तुम्हारी सारी मुद्रायें पुकार और प्यास की खबर देने लगें जिस दिन तुम्हारी पुकार और प्यास सौ डिग्री पर आती, उसी क्षण।
कोई भी नहीं कह सकता कि सौ डिग्री कब आती। और हर आदमी की डिग्री अलग- अलग आती। इसलिए तुम पुकारे जाओ। तुम अथक पुकारे जाओ। तुम्हारी पुकार ऐसी हो कि पुकार ही रह जाये, तुम मिट जाओ। प्रश्न ही बचे, प्रश्नकर्ता खो जाये। प्यास ही बचे। कोई भीतर प्यासा अलग न रह जाये। प्यास में ही डूब जाये और लीन हो जाये| उसी क्षण द्वार खुल जाते हैं। द्वार दूर नहीं हैं, द्वार तुम्हारे भीतर हैं। लेकिन उन्हीं के लिए खुलते हैं जो प्राण-प्रण से पुकारते हैं।
नहीं, पहल भी वस्तुत: उसी के हाथ में है। लेकिन इससे तुम यह मत समझ लेना जैसी कि बहुत संभावना है कि फिर हमें कुछ भी नहीं करना। अब यह बड़े मजे की बात है कि आदमी ऐसा धोखेबाज है, चालाक है। अगर उससे कहो कि तुम्हें कुछ करना है तो तुम परमात्मा को पा तो वह कर्ता बन जाता है। कर्ता के कारण अहंकार सघन हो जाता है, यात्रा बंद हो जाती है। अगर उससे कहो, तुम्हें कुछ नहीं करना है तो वह आलसी बन जाता है। वह फिर पुकारता भी नहीं। वह कहता है, पुकार भी वही पुकारेगा तब होगी। अब हम कर भी क्या सकते हैं? अब कुछ भी नहीं करना है। तो वह अपनी चांदर ओढ़कर सो जाता है।