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में हो। तुम्हारे मन में भी राजपद का मोह है। तुम भी चाहते हो पद हो, प्रतिष्ठा हो जो तुम्हें नहीं हो सका है और किसी और को हो गया है, चलो कम-से-कम उसके दर्शन कर आएं !
एक होटल में एक आदमी भीतर प्रविष्ट हुआ। बड़ा मजबूत आदमी, ऊंचा - तगड़ा । उसने एक गिलास शराब पी ली और जोर से चिल्लाकर कहा, है किसी की ताकत कि जरा आजमाइश कर ले ? लोग सिकुड़कर और डरकर बैठ गये। फिर उसने चिल्लाकर कहा कि कोई दमदार नहीं, कोई मर्द नहीं सब नामर्द बैठे हैं? एक छोटा-सा आदमी उठा। लोग तो चकित हुए कि यह छोटा आदमी किसलिए उठ रहा है! यह तो इसको चकनाचूर कर देगा!!
लेकिन वह छोटा आदमी 'कराते' का जानकार था। उसने जाकर दो-चार हाथ मारे, वह जो बड़ा तगड़ा आदमी था, क्षण भर में जमीन पर चारों खाने चित हो गया। और वह छोटा आदमी उसकी छाती पर बैठ गया और बोला, बोलो क्या इरादा है! देखा मर्द ? वह बड़ा आदमी, मजबूत आदमी बड़ा हैरान हो गया। उसने कहा, आखिर भाई तू है कौन? तो उसने कहा मैं वही हूं जो तुम सोचते थे कि तुम हो जब तुम होटल में भीतर आए थे। मैं वही हूं जो तुम सोचते थे कि तुम हो, जब म होटल भीतर आए थे। जो शराब पीकर तुमने सोचा कि तुम हो, मैं वही हूं। कुछ कहना है ?
हम जब स्तुति करते किसी की, तो किसी बहुत गहरे तल पर अचेतन मन के हम अपने ही भविष्य की तलाश कर रहे हैं, जैसा हम होना चाहते हैं। इसलिए जो आदमी राजनेता के दर्शन को जाता वह संत के दर्शन को नहीं जाएगा। या अगर संत के भी दर्शन को जा रहा हो, तो इस आदमी के मन में राजनीति और धर्म का कोई भेद ही नहीं है। जिसकी भी प्रतिष्ठा है! यह प्रतिष्ठित होना चाहता है, कैसे प्रतिष्ठा मिलेगी इसकी इसे कोई चिंता नहीं है। यह अपने अहंकार की पूजा चाहता है। चाहे राजनेता होकर मिल जाए, चाहे महात्मा होकर मिल जाए, इसे अहंकार पर आभूषण चाहिए। तुम जब स्तुति करते हो किसी की, तो तुमने अपनी मांग जाहिर की, तुमने अपनी वासना प्रगट की ऐसा मैं होना चाहता हूं। नहीं हो पाया, मजबूरी है, लेकिन उसे तो देख आऊं जो हो गया है! उसके चरण में तो श्रद्धा के फूल चढ़ा आऊं कि मैं तो हार गया लेकिन तुम हो गये, चलो, कोई तो हो गया! मगर यह घटना घट सकती है, इसके लिए आंख भर कर देख तो आऊं ! जब तुम बुद्ध के पास जाते हो और बुद्ध के चरणों में सिर झुकाते हो, तब भी तुम यही कह रहे हो। मैं तो न हो सका, मैं तो खो गया मार्गों में, अनंत थे मार्ग, राह न मिली, मैं तो कीटों में उलझ गया, आप पहुंच गये! आपके दर्शन ही कर लूं? आंख इतने से ही भर लूं! इतना तो भरोसा आ जाए कि भला मैं भटक गया, लेकिन भटकाव अनिवार्य नहीं है। पहुंचना हो सकता था - कोई पहुंच गया है।
या तुम जब किसी की निंदा करते हो। बर्ट्रेड रसॅल ने लिखा है कि अक्सर ऐसा होता है कि जब कोई आदमी किसी बात की बहुत निंदा करता हो, तो जरा उस आदमी को गौर से देखना। समझ कि यहां किसी की जेब कट जाए, और एक आदमी जोर से चिल्लाने लगे, पकड़ो, मारो, कौन है चोर, ठिकाने लगा देंगे! उस आदमी को पहले पकड़ लेना। बहुत संभावना तो यह है कि यह आदमी चोर है, इसी ने जेब काटी है। चोर बहुत जोर से चिल्लाता है। जोर से चिल्लाने के कारण दूसरों को भरोसा