________________
एक मछलियां बेचनेवाली औरत शहर मछलियां बेचने आती थी। एक दिन अचानक गांव लौटते वक्त शहर के बड़े रास्ते पर किसी पुरानी परिचित महिला से मुलाकात हो गयी दोनों बचपन में साथ पढ़ी थीं। उस महिला ने कहा आज रात हमारे घर रुक जाओ। वह मालिन थी। उसके पास बड़ा सुंदर बगीचा था। और जब रात वह मछुआरिन उसके घर सोयी, तो उसने बहुत से बेले के फूल लाकर उसके पास रख दिये। वह मछुआरिन करवटें बदले, उसको नींद न आए। तो मालिन ने पूछा बात क्या है बहन, तू सोती नहीं, नींद नहीं आ रही, कुछ अड़चन है, कुछ चिंता है? उसने कहा और कुछ नहीं, ये फूल यहां से हटा दें। मुझे तो मेरी टोकरी दे दें जिसमें मैं मछलियां बेचने लायी थी। उस में थोड़ा पानी सींच दें और मेरे पास रख दें। क्योंकि मछलियों की सुगंध जब तक मुझे न आए मुझे नींद न आ सकेगी। मछलियों की सुगंध! आदत हो जाए तो मछलियों की सुगंध के बिना भी नींद न आएगी। फूल भी बेचैन कर सकते हैं अगर आदत न हो। गंदगी के कीड़े गंदगी को गंदगी नहीं जानते। जानते
तो छोड़ ही देते न! कौन रोकता था?
तुम जिसे प्रेम कहते हो वह प्रेम नहीं है, वह अहंकार की दुर्गंध हैं। ज्ञानी में वैसी अहंकार की दुर्गंध तो चली जाती है, तुम जिसे प्रेम कहते हो वह तो नहीं बचता, क्योंकि तुममें तो प्रेम है ही नहीं, 'मेरा' _ 'तेरा' है।'मैं' _ 'तू का उपद्रव और कलह है, उसको तम प्रेम कहते हो। और तम्हारे प्रेम का परिणाम क्या है? एक-दूसरे की गर्दन को फीस लेते हो। तुम्हारा प्रेम तो एक तरह की फांसी है, जो फंस गया वह पछताता है।
जानी परिपूर्ण शान से भरा है, उसी तरह परिपूर्ण प्रेम से भी भरा है। लेकिन उसका प्रेम अब 'मेरे से बंधा नहीं है, बेशर्त है। अब किसी से बंधा नहीं है, ज्ञानी के प्रेम पर किसी का पता नहीं लिखा है कि इसके लिए है। ज्ञानी प्रेम है। वह उसकी अवस्था है, संबंध नहीं।
नि:स्नेहः पुत्रदारादौ निष्कामो विषयेमु चा
इसलिए मैं इसकी व्याख्या करता हूं कि ज्ञानी वह जो 'मेरे' - 'तेरे वाला प्रेम है, उससे मुक्त हो गया होता है। और उससे मुक्त होकर ही वह उस प्रेम को उपलब्ध होता है जिसको जीसस ने परमात्मा कहा है। परमात्मा प्रेम है। जिसको बुद्ध ने करुणा कहा है। वह बुद्ध का शब्द है प्रेम के लिए। जिसको महावीर ने अहिंसा कहा है। वह महावीर का शब्द है प्रेम के लिए। हमारा तो प्रेम हिंसा है।
तुमने खयाल किया? जिसको तुम प्रेम करते हो उसी के साथ तुम हिंसा करते हो| उसी के चारों तरफ दीवालें खड़ी कर देते हो। किसी स्त्री के प्रेम में पड़ गये, दीवालें बांधी। सब तरफ से उसके पास सींखचे खड़े कर दिये, उसे पीजडे में बंद कर दिया, उसके पंख काट दिये।
तुम इस स्त्री को प्रेम करते होते तो इसे स्वतंत्रता देते, न कि बांधते। तुम इसे मुक्त आकाश में छोड़ते न कि पीजडे में बंद करते। यह तुम्हारा प्रेम बड़ा खतरनाक है। और अगर यह स्त्री किसी की तरफ देखकर मुस्कुरा भी दे, तो जहर फैल जाता है तुम्हारी छाती में। तुम इसकी गर्दन काट डालोगे।