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यह तो अंधे को भी पता चलेगा कि रात गयी। पक्षी गीत गाने लगे। प्रभात की प्रभाती शुरू हो गयी। यह तो अंधे को भी पता चलेगा कि अभी सब सन्नाटा था, सब सोया था,
ड़ा था, अब फिर पुनरुज्जीवित हो गया, फिर गुनगुनाहट है। सूरज चाहे दिखायी न पड़े, लेकिन सूरज का ताप, ऊष्मा तो प्रतीत होगी। वह तो अनुभव में आएगा। अंधे को भी सूरज की प्रतीति तो होती है। अंधा भी जानता है कब रात हो गयी, कब दिन हो गया।
___ माना कि तुम अभी भीतर की आंख वाले नहीं, लेकिन बुद्धपुरुष के पास जाओगे तो यह मलयाचल से आती हवा का टुकड़ा तुम्हें स्पर्श करेगा। तुम इसमें नहा जाओगे। तुम ताजे हो जाओगे। यह चांदनी का टुकड़ा तुम पर बरस जाएगा। तुम अपूर्व रस में विमुग्ध हो जाओगे। यह काव्य बुद्ध के अस्तित्व का तुम्हारे भीतर कोई धुन बजाने लगेगा। यह बुद्ध की वीणा तुम्हारे भीतर कानाफूसी करेगी। तुम परिभाषाओं की फिकिर छोड़ो, पास जाने की हिम्मत जुटाओ। परिभाषाएं पंडितों के लिए छोड़ दो। खोजियों के लिए परिभाषाओं से काम नहीं चलता। खोजी को अनुभव चाहिए। और अनुभव सामीप्य से मिलता है। सत्संग से मिलता है।
हर पत्ते पर है बूंद नयी हर बूंद लिये प्रतिबिंब नया प्रतिबिंब तुम्हारे अंतर का अंकुर के उर में उतर गया भर गयी स्नेह की मधुगगरी गगरी के बादल बिखर गये
जब तुम आओगे किसी बुद्धपुरुष के निकट झुकोगे, तो तुम पाओगे सब नया हो गया। अब तक सब पुराना था, जराजीर्ण, खंडहर जैसा, सड़ा-गला, बदबू से भरा, कूड़ा-करकट, कचरे का ढेर। हर पत्ते पर है बूंद नयी
बुद्धत्व का संस्पर्श सब नया कर जाएगा। हर पत्ते पर है बूंद नयी हर बूंद लिये प्रतिबिंब नया प्रतिबिंब तुम्हारे अंतर का अंकुर के उर में उतर गया भर गयी स्नेह की मधुगगरी गगरी के बादल बिखर गये
और तुम एक अपूर्व घटना अनुभव करोगे तुम जो सदा प्रेम से रिक्त थे, तुम्हारे स्नेह की गगरी भी भर गयी। न केवल भर गयी, बह गयी। फूट पड़ी। लुटने लगी। न केवल तुम प्रेम से भर गये, बल्कि तुमसे प्रेम की धाराएं औरों की तरफ भी विस्तीर्ण होनी शुरू हो गयीं। जिस व्यक्ति के संस्पर्श में तुम्हारे भीतर प्रेम जग जाए, जानना कि बुद्धत्व घटा है। जिस व्यक्ति के संस्पर्श में तुम्हारे