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भी चीज से आरोपित नहीं हो रहे हो। अब तुम निराकार हो, अब कोई आकार नहीं है।
ध्यान रखना, जब मैं कह रहा हूं कोई आकार नहीं, तो इसमें तुमने बुद्ध की धारणा बनायी कि कृष्ण की धारणा बनायी, वे भी आकार सम्मिलित हैं। इसलिए झेन फकीर कहते हैं, अगर ध्यान मार्ग पर बुद्ध मिल जाएं, तो उठाकर तलवार दो टुकड़े कर देना । ध्यान के मार्ग पर अगर बुद्ध मिल जाएं, तो उठाकर तलवार दो टुकडे कर देना ! फिर जरा भी सोच - संकोच मत करना। क्योंकि ध्यान के मार्ग पर अगर बुद्ध का आकार उठ आया, तो फिर तुम विकृत हो गये। बुद्ध का आकार भी विकृत कर देगा।
अगर ध्यान के मार्ग पर कृष्ण बांसुरी बजाने लगें, तो धक्का मार बाहर निकाल देना, कि जाओ अभी, यहां बीच में न आओ। ये कहां तुम बांसुरी लिए चले आ रहे! क्योंकि ध्यान में तो वह भी विम्न है। चाहे क्राइस्ट दिखाई पड़े, चाहे कृष्ण, चाहे बुद्ध, चाहे महावीर, उनको नमस्कार कर लेना! उनसे बचकर निकल जाना। अपना पल्ला छुड़ा लेना उनसे । वे तुम्हारे ही मन के विचार हैं। अंतिम विचार मन उठा रहा है। मन कहता है अब संसार से तुम छूट रहे हो, चलो, मैं तुम्हें मोक्ष दे दूं। तुम कहते हो धन में तुम्हारी उत्सुकता नहीं, मैं तुम्हें बुद्ध दे दूं मन आखिरी प्रलोभन दे रहा है। मन कह रहा है तुम्हें जिन खिलौनों में रुचि हो, वही देने को मैं राजी हूं। कृष्ण को खड़ा कर दूं। मन कल्पनाएं कर रहा है। और सभी कल्पनाएं तुम्हें विकृत कर जाती हैं।
परम ज्ञान की अवस्था, इसलिए मैं कहता हूं, परम अज्ञान की अवस्था है। क्योंकि परम ज्ञान की अवस्था परम निर्दोषता की अवस्था है। प्राइमल इनोसेंस। वह जो मौलिक निर्दोषता है, क्वांरापन है, उसकी अवस्था है। जहां अभी ज्ञान ने ज्ञाता को विकृत नहीं किया। ज्ञान उठा, विकृति उठी । ज्ञान उठा, मन उठा। ज्ञान उठा, उपद्रव शुरू हुआ। जहां तुमने जाना, वहीं से संकीर्ण हुए| जानना मात्र संकीर्ण कर देता है। इसलिए तो उपनिषद कहते हैं कि जो कहें कि जानते हैं, जान लेना कि नहीं जानते। जो कहे कि नहीं जानता हूं जानना कि वही जानता है। इसीलिए तो बुद्ध चुप रह गये। जब किसी ने पूछा ईश्वर को जानते हैं, तो चुप रह गये। इसका उत्तर देने में गलती हो जाएगी। उत्तर देना ही गलत होगा। जो भी उत्तर दिया जाएगा, गलत होगा। उत्तर मात्र गलत होगा। कहो कि जानता हूं, तो भूल हो गयी। कहो कि नहीं जानता हूं तो भूल हो गयी क्योंकि जानता तो हूं। यह कहना कि नहीं जानता हूं, असत्य होगा। और यह कहना कि जानता हूं, विकृति होगी। इसलिए चुप रह जाने के सिवाय उपाय नहीं।
तो परम उत्तर तो मौन ही है। निःशब्द, शून्य ही है। परम ज्ञान में कुछ भी समाहित नहीं है। परम ज्ञान सभी चीजों से मुक्त हो जाने की परम दशा है। सबका अतिक्रमण ।
लेकिन तुम कहते हो कि मुझे लगता है कि आप सब कुछ हैं। तुम्हारा लगना तुम्हारे मोह, तुम्हारी प्रीति का लक्षण है। तुम्हें मुझसे मोह है, तो तुम्हें लगता है, सब कुछ हूं। मुझे मुझसे बितकुल मोह नहीं है, इसलिए मैं तुमसे कहता हूं कुछ भी नहीं
तुम्हारे मोह को मैं समझता हूं। तुम्हारे मोह के कारण तुम्हें लगता होगा कि मैं सब जानता