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हो, बच्चे की हो, क्या फर्क पड़ता है! अंगुली असली न हो, लकड़ी की हो, तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता है। अंगुली से कोई चांद का लेना-देना नहीं है। जब कोई अंगुली बताता है, तो तुम अंगुली मत पकड़ लेना। इशारे का मतलब होता है, अंगुली छोड़ो, चांद को देखो। उस तरफ देखो जिस तरफ इशारा है। ये इंगित हैं, परिभाषाएं नहीं।
पत्थर गड़े हुए हैं अक्षर मिटे हुए अशांत दूरियों का अंदाज कौन दे
हर ओंठ पर जड़ी है गीतों की बेकसी
फिर पांव को थिरकने का राज कौन दे
जिस व्यक्ति के पास तुम्हें अज्ञात दूरियों का अंदाज मिले - एक इशारा, जिसके पास ज्ञात पर ही तुम समाप्त न होते होओ, जिसके पास जाकर अज्ञात की थोड़ी झलक मिले, तुम्हारे भीतर अज्ञात थोड़े पर फड़फड़ाने लगे, तुम्हारे भीतर भी जो नहीं जाना है उसे जानने की अदम्य आकांक्षा, पैदा हो जाए, तुम्हारे भीतर एक नयी प्यास का जन्म हो जिससे तुम कभी परिचित ही न थे- धन की प्यास थी, पद की प्यास थी- एक नयी प्यास, सत्य की प्यास उठे।
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पत्थर गड़े हुए हैं अक्षर मिटे हुए
अज्ञात दूरियों का अंदाज कौन दे
इस संसार में तो ऐसी हालत है जैसे मील का पत्थर हो और उसके अक्षर मिट गये हों। ऐसी हालत है लोगों की। लोग पथरीले हो गये हैं। और उनकी आत्मा के सब अक्षर मिट गये हैं। प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा का तीर अनंत की और अज्ञात की ओर है, लेकिन मिट गया है, धुंधला हो गया है। समय ने, रेत ने, समय की धूल ने सब ढांप दिया है। तुम मील के पत्थर नहीं हो अब तुम्हारे भीतर कोई इशारा नहीं है जो तुमसे पार जाता हो। तुम अपने ही पर समाप्त हो गये हो। ऐसा समझो कि जैसे मील के पत्थर को किसी ने हनुमान जी समझकर पूजा शुरू कर दी। लाल रंग से रंगे बैठे हैं और अक्षर भी मिट गये हैं, तो किसी ने फूल चढ़ा दिये। और हनुमान जी की पूजा शुरू हो गयी। अब इससे कोई इशारा आगे की तरफ नहीं जाता, ये अपने पर ही बात खतम हो गयी ।
पत्थर गड़े हुए हैं अक्षर मिटे हुए
अशांत दूरियों का अंदाज कौन दे
इस संसार में जब कभी तुम्हें कोई ऐसा व्यक्ति मिल जाए जिससे तुम्हारे भीतर अज्ञात की सुगबुगाहट पैदा होने लगे, तुम्हारे भीतर एक नयी खोज पैदा हो, अनजानी, अपरिचित, कभी न जानी, कभी न पहचानी, जिसके पास से तुम्हें यात्रा का एक नया द्वार खुले, एक नया आयाम, समझना कि वहां कुछ है। कोई किरण फूटी, कोई सूरज वहां ऊगा ।
हर ओंठ पर जड़ी है गीतों की बेकसी
फिर पांव को थिरकने का राज कौन दे
यहां संसार में तो सब ओंठ सीए हुए हैं। गीत की तो छोड़ो, मुश्किल से गालियां निकलती हैं।