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स्वच्छंद चरतो देशान्यत्रास्तमितशायिनः। और ज्ञानी का आचरण परममुक्त है। वह हवा की तरह मुक्त है।
हवा हू हवा में वसती हवा हूं
वही,
ही वही जो धरा का वसती सुसंगीत मीठा गुजाती फिरी हूं वही, हा वही जो सभी प्राणियों को पिला प्रेम- आसव जिलाए हुए हूँ? कसम रूप की है कसम प्रेम की है कसम इस हृदय की सुनो बात मेरी, बड़ी बावली हूं अनोखी हवा हूं बड़ी मस्तमौला, नहीं कुछ फिकर है बड़ी ही निडर हं जिधर चाहती हूं उधर घूमती हूं मुसाफिर अजब हूं न घर-बार मेरा न उद्देश्य मेरा न इच्छा किसी की न आशा किसी की प्रेमी न दुश्मन जिधर चाहती हूं उधर घूमती हूं: हवा हूं हवा में वसती हवा हूं जहां से चली मैं जहां को गयी मैं शहर, गांव, बस्ती