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अधरों पर परितोष अधर धर युग की तृषा हरो। पूनम बन उतरो।
मुक्त प्राण निष्प्राण नियम-यम गंध विधुर प्राणों का संभ्रम निष्फल हों शूलों के श्रम क्रम साधक सिद्ध करो। पूनम बन उतरो।
विकसित हों साधों के सब दल मुकलित परिमल के पाटल दल जीवन हो सितप्रभ प्रण उज्वल ज्योतिर्मय विचरो। पूनम बन उतरो।
पुकारता है खोजी : पूनम बन उतरो। प्यास है, तुम बरसो। ज्यादा से ज्यादा मेरे बस में इतना है कि मैं तुम्हें रोकू न कि मैं द्वार खुले रखू कि तुम आओ तो इंकार न करूं, कि तुम आओ तो स्वीकार करूं कि तुम आओ तो मैं द्वार पर प्रतीक्षा करता हुआ मिलू बस, इतना मेरे बस में है।
पूनम बन उतरो। लेकिन तुम आओ। तुम्हारे बिना आये न हो सकेगा।
यहूदियों में एक बहुत महत्वपूर्ण विचार है हसीद फकीरों का कि आदमी के खोजें थोड़े ही परमात्मा मिल सकता है। परमात्मा जब आदमी को खोजता है तभी मिलन होता है। यह बात महत्वपूर्ण है। आदमी के खोजें भी क्या होगा? एक बूंद सागर को खोजने चले, राह में खो जायेगी कहीं। धूलधवांस में दब जायेगी कहीं।
और बूंद भी शायद सागर तक पहुंच जाये क्योंकि बूं और सागर के बीच का फासला बहुत छोटा है। लेकिन आदमी परमात्मा को खोजने चले–कहां खोजेगा? किस दिशा में, कहां जायेगा? किन चांद-तारों पर? और बूंद और सागर के बीच जो अनुपात है, बूंद बहुत छोटी है सागर से लेकिन इतनी छोटी नहीं जितना आदमी छोटा है इस विराट से। यह अनुपात.. बहुत दूर है परमात्मा, बहुत बड़ा है। और हम तो बहुत छोटे हैं। कहां खोज पायेंगे? कैसे खोज पायेंगे?
खलील जिब्रान की एक कहानी है कि एक आदमी सोया है और तीन चींटियां उसके चेहरे पर