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खड़े होते हो। रात जब तुम सोते हो, तुम जमीन के समानांतर हो जाते हो। तुम्हीं हो रात सोये हुए तुम्हीं हो सुबह खड़े हुए लेकिन कितना फर्क है मूर्छा में तो तुम बिलकुल पत्थर-मिट्टी हो जाते हो। सुबह जब जागकर खड़े होते हो तो तुम जीवंत होते हो।
और भी एक बड़ी जाग है अभी होने को। अभी तो जाग की तुमने पहली किरणें ही जानी हैं। अभी जाग का पूरा सूरज कहां उगा? अभी तो प्राची लाल ही हुई है। जब पूरा सूरज उगता है और जब बुद्धत्व का प्रकाश भीतर होता है तब तुम जानोगे वस्तुत निसर्ग क्या है!
___ पशु-पक्षी नैसर्गिक हैं, उन्हें होश नहीं। बुद्धपुरुष भी नैसर्गिक हैं उन्हें होश है। आदमी दोनों के बीच में उलझा है, न इस तरफ न उस तरफ। इसलिए आदमी बड़ा बेचैन है। जब तक तुम आदमी हो, बेचैनी रहेगी। बेचैनी आदमी का भाग्य है -दुर्भाग्य कहो। इससे पार होना पड़ेगा। पीछे गिरना सरल है लेकिन असंभव। आगे जाना कठिन है लेकिन संभव; इसलिए आगे को चुनो।
जिसे तुमने अब तक जीवन समझा है वह तो क्षणभंगुर है। जिसे तुमने अब तक कामवासना का खेल समझा है वह तो बिलकुल स्वन्नवत है। झूठ में और उसमें बहुत फर्क नहीं है आभास मात्र
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क्षणभंगुर जीवन के चार सुमन जीवन के।
आंगन में सूर्य घोल चंदा से बोल-बोल मोल लिये नटखट ने स्वर के व्यंजन अमोल चुटकी में बीत गये महंगे क्षण बचपन के चार सुमन जीवन के।
अर्पित हो मन्मथ में तरुणाई के रथ में गलबाही डाल चले प्रीत प्यार जनपथ में झूम झूम चूम लिये मादक प्रण यौवन के चार सुमन जीवन के।
अंजुलि भर बीते पल नैनों में गंगाजल लपटों की बाहों में पिघल गये स्वप्यमहल माटी में घुले-मिले मेघ सुवन कंचन के चार सुमन जीवन के।
क्षणभंगुर जीवन के चार सुमन जीवन के यह तो जिसे तुम अभी काम कह रहे हो, वासना कह रहे हो, यह कर लूं यह पा लूं ऐसा हो