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में अटके हो। जो आगे है वह कठिन है लेकिन संभव है । बुद्ध होना कठिन है, दुर्गम है मार्ग, है खड्ग
की धार कृपाण पर चलना, लेकिन संभव है। बुद्ध को हुआ महावीर को हुआ, कृष्ण, क्राइस्ट को हुआ मोहम्मद, मूसा को हुआ तुम्हें हो सकता है। प्रवेश कर जाओगे।
फिर तुम प्रकृति में प्रवेश कर जाओगे। फिर निसर्ग में
मनुष्य अकेला एक प्राणी है जो निसर्ग में नहीं है, मध्य में है, अटका है, आधा आधा है, अधूरा है। तुमने किसी कुत्ते को सोचा, अगर तुम कहो कि यह कुत्ता अधूरा है तो क्या यह बात सार्थक मालूम होगी! सब कुत्ते पूरे हैं। तुम किसी कुत्ते को नहीं कह सकते कि तुम अधूरे हो सब कुत्ते पूरे कुत्ते हैं। लेकिन किसी आदमी को तो तुम कह देते हो कि तुम बहुत अधूरे आदमी हो और यह बात सार्थक है। सब कुत्ते पूरे, सब बिल्लियां पूरी, सब शेर सिंह पूरे, आदमी अधूरा है। आदमी को पूरा होना है। बुद्ध को हम कहते पूर्ण, कृष्ण को कहते पूर्ण, अष्टावक्र को कहते पूर्ण। आदमी को पूर्ण होना है। आदमी को जैसा होना है, अभी है नहीं ।
तुम्हारा प्रश्न है कि 'कामना के मूल में नैसर्गिक काम है । '
सच है बात। कामना के मूल में नैसर्गिक काम है लेकिन नैसर्गिक काम पशुओं में भी है। और नैसर्गिक काम ही बुद्धपुरुषों में राम हो गया है। उसने एक नया रूप लिया है, एक नई भाव-भंगिमा ली है। वही ऊर्जा रूपांतरित हो गई है, एक कीमिया से गुजर गई है।
एक तो हीरा है पड़ा हुआ कचरे - पत्थर में, कूड़े में, मिट्टी से भरा, और एक हीरा है फिर किसी जौहरी के द्वारा तराशा गया, सब गलत अलग किया गया । कोहिनूर जब पाया गया था तो आज जितना उसका वजन है उससे तीन गुना वजन था। मगर तब वह एक बदशकल पत्थर था। हजार चूके थीं उसमें। काटते –काटते, छाटते-छाटते, निखारते - निखारते अब केवल एक बटा तीन बचा है, लेकिन अब उसकी बात कुछ और। अब कुछ बात है। अब उसकी एक भाव वह पूर्ण हीरा है। अब जो जो गलत था, जो-जो व्यर्थ था, जो दिया गया है, अलग कर दिया है। आज अगर तुम्हारे सामने वह पुराना पत्थर पड़ा हो और यह कोहिनूर रखा हो तो तुम पहचान ही न सकोगे कि इन दोनों के बीच कोई संबंध भी हो सकता है।
भंगिमा है, जो अनूठी है। अब जो नहीं होना था, वह सब क
तुम अभी एक अनगढ़ पत्थर हो, इस पर निखार आ जाये । यही ऊर्जा काम की अगर पारखी के हाथ में पड़ जाये, जौहरी के हाथ में पड़ जाये, तो यही ऊर्जा ऐसे अदभुत रूप और सौंदर्य को प्रगट करती है, ऐसी महिमा को प्रगट करती है। इसी महिमा को तो हम बुद्धत्व कहते हैं। कोई मनुष्य आ गया, पूर्ण हुआ। इसी महिमा को तो हम भगवत्ता कहते हैं।
भगवत्ता का इतना ही अर्थ है कि तुम्हारे भीतर जो मूर्च्छित निसर्ग था वह अगच्छत निसर्ग हो गया। जो प्रकृति सोयी पड़ी थी, जागकर खड़ी हो गई। राम जब सोये पड़े होते हैं तो काम है। और जब काम जागकर खड़ा हो जाता है तो राम बस इतना ही फर्क है।
तुमने देखा, रात जब तुम सोते हो तो जमीन पर सो जाते हो। जब तुम सुबह खड़े होते हो तो तुम्हारा कोण बिलकुल बदल जाता है। तुम जमीन से नब्बे का कोण बनाने लगते जब तुम सुबह