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ठीक रहती है फिर धीरे
तक तो आंख जा चुकी होती है। इसलिए कभी किसी ने यह कहा ही नहीं, आंख है।
यह आंखवाला आदमी बाहर की दुनिया से यात्रा करता हुआ किसी तरह उन पहाड़ों, दुर्गम पहाड़ों को पार करके पहुंच गया। वे उस कबीले के लोग इसकी बात ही न मानें। इस पर हंसे। तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया? कभी सुना? कैसी बातें कर रहे हो? किसको धोखा दे रहे हो? आंख होती ही नहीं।
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धीरे खराब हो जाती है। जब तक बच्चा बोलने की उम्र में आता है तब
और इस आदमी को प्रमाण जुटाना मुश्किल हो गया क्योंकि वहां सब अंधे थे। भीड़ तो उनकी थी। और गांव भर हंसता और कहता, कहां है वह अंधा ? इस आदमी के बाबत - वें अंधा मानते इसको । इसका नाम अंधा रख लिया।
उस गाव की एक लड़की इसके प्रेम में पड़ गई। लेकिन गांव ने एक शर्त लगा दी। उन्होंने कहा कि अगर इस लड़की से प्रेम करना है तो एक शर्त है। क्योंकि हमारे यहां कभी भी तुम कहते हो, तुम्हारे पास आंखें हैं। हमें पक्का पता नहीं, हैं या नहीं। लेकिन एक बात पक्की है कि हमारे इस देश में, हमारे इस समाज में कभी आंखवाले से हमारी किसी लड़की ने शादी नहीं की है। तो इसका शास्त्रों में कोई उल्लेख नहीं है, न परंपरा में कोई उल्लेख है। यह हमारी धारणा के विपरीत है। अगर तुम कहते हो, तुम्हारी आंखें हैं, तो तुम्हें आपरेशन के लिए राजी होना पड़े। हम तुम्हारी आंखें निकाल लेते हैं। तुम अंधे हो जाओ तो ही शादी कर सकते हो।
ठीक है। जब कोई ब्राह्मण से शादी करे तो वह कहता है, ब्राह्मण हो कि नहीं? कोई हिंदू से शादी करे तो वह कहता है, तुम हिंदू हो कि नहीं? कोई ईसाई से शादी करे तो वह कहता है, पहले ईसाई हो जाओ फिर हम शादी कर लेंगे।
उन्होंने भी ठीक कहा। अंधे हो जाओ। हमारे जैसे हो जाओ। हम नहीं मानते कि तुम अंधे हो कि आंखवाले हो, मगर हम जैसे हो जाओ तो ही हमारी लड़की से शादी कर सकते हो।
वह आदमी बड़ी मुश्किल में पड़ गया। और उसने कहा, रात भर का मुझे मौका दो! इधर प्रेम खींचे, उधर आंखों का आग्रह । लेकिन सुबह होते होते वह भाग खड़ा हुआ। उसने कहा कि प्रेम तो फिर कहीं हो जायेगा। ये आंखें एक बार गईं तो गईं। और फिर उसे सूरज समझ में आने लगा और रंग और रूप और सारे जगत का यह सौंदर्य, यह सब खो दूं? वह भाग खड़ा हुआ। उसने कहा कि ये लोग कहीं पकड़कर जबर्दस्ती आपरेशन कर ही न दें।
तुम जब भक्त बनोगे तो लोग तुम्हें अंधा कहेंगे यह बात सच है । क्योंकि लोग अंधे हैं। उनके पास भक्ति की आंखें नहीं हैं।
प्रेम की एक आंख है। कुछ चीजें हैं जो प्रेम ही देखता है, और कोई नहीं देखता। इसलिए कहता हूं कि प्रेम की एक अपनी आंख है। अपना देखने का ढंग, अपनी तर्ज, अपनी शैली है। अपना एक अलग ही मार्ग है प्रेम का । कुछ चीजें केवल प्रेम ही देख पाता है और कोई नहीं देख पाता। कुछ के लिए तर्क बिलकुल अंधा है।
चीजों