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यह संसार भक्त के लिए शत्रु नहीं है और जीवन विरोध नहीं है। जीवन के साथ भक्त का अविरोध है, तादात्म्य है। जीवन प्रभु का है। जो उसका है, सब शुभ है, सब सुंदर है। उसने बनाया, उसके हस्ताक्षर हैं, ठीक ही होगा। उसे फिर कोई शिकायत नहीं है।
भक्त की तो नये-नये गीतों के, नये-नये नृत्यों के जन्म में आकांक्षा है। नये विवाह रचाना
आओ, फिर से ध्यायें चंद्रमुखी संध्यायें ओ सूर्यमुख सबेरे
गोपन व्यापारों को कहा नहीं जाता है किंतु कहे बिन भी तो रहा नहीं जाता है आओ, पुन: रचायें संकेत की ऋचायें ओ सप्तपदी फेरे, ओ सूर्यमुख सबेरे!
रंगरंगी चितवन में ओर-छोर बंध जायें पर्वत-से मनसूबे बिन साधे सध जायें आओ फिर पिघलायें अलगाव की शिलायें ओ अजनबी अंधेरे, ओं सप्तपदी फेरे!
आलिंगित श्वासों में फिर आदिम गंध भरें दुष्यन्ती रागों में शाकुंतल छंद भरें आओ पुन: जगायें सोयी स्वर बलगायें
ओं गीत बन घनेरे, ओ सप्तपदी फेरे! फिर से डालें सात फेरे। फिर से जगायें सोयी ऊर्जा को। फिर से मृत प्राणों में संजीवनी फूंके। फिर नाचे। फिर-फिर नाचे। फिर-फिर हो आना। फिर-फिर हो खोज। भक्त थकता नहीं। प्रेमी कभी नहीं थकता। ज्ञानी पहले से ही थका हुआ है। वह कहता है, कब छुटकारा मिले। अब बैठ जाने दो। अब बहुत चल चुके
तुम साफ कर लेना अपने मन में। अपने भाव को ठीक से पहचानो। अगर तुममें हृदय प्रबल है तो भक्ति तुम्हारा मार्ग है। अगर हृदय सो गया है या जागा ही नहीं कभी और हृदय में कोई स्वर नहीं उठते तो ध्यान तुम्हारा मार्ग है। या तो निर्विचार बनी या प्रार्थनापूर्ण। मगर दोनों को एक साथ सम्हालने की चेष्टा में संलग्न मत हो जाना। अन्यथा बहुत भटकाव है फिर और तुम बहुत उपाय करोगे और कुछ परिणाम न होगा। एक हाथ से बनाओगे, एक हाथ से मिटेगा।
इसलिए पहली बात यात्री के लिए, इस अंतर की खोज के लिए पहली बात स्मरण रखने की