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न समझ सके, नाराज हो गये।
मंसूर के जीवन में बड़ी मजेदार घटना है। मंसूर पहले एक सूफी फकीर के पास था। और जब मंसूर की यह तांत्रिक घटना घटी - मंत्र तक तो ठीक थी, क्योंकि मैत्र तक तो सभी धर्म आशा देते हैं कि ठीक है। तंत्र की मुश्किल खड़ी हो जाती है, क्योंकि तंत्र की घोषणा बड़ी अनूठी है।
जब तक मंसूर मंत्र साध रहा था तब तक तो गुरु राजी था। लेकिन जब अनलहक-सी ये घोषणायें उठने लगीं- मैं ईश्वर हूं मैं सत्य हूं तो गुरु ने कहा सुन तू झंझट में पड़ेगा, हमको भी झंझट में डालेगा–गुरु कुछ बड़ा गहरा गुरु न रहा होगा- तू यहां से जा, या बंद कर। इस तरह के वचन बोलना बंद कर। लेकिन मंसूर ने कहा, मैं बोलता हूं तो बंद कर दूं। यह जो बोल रहा है, वह जाने। मैं तो, जब भी भीतर मेरे तार जुड़ जाते हैं तो बस, फिर मैं नहीं जानता क्या हो रहा है। फिर तुम मुझसे कहो ही मत। अपनी तरफ से कोशिश करूंगा, लेकिन मेरी कोशिश मंत्र तक जाती है। जब तक मैं दोहराता हूंं कुछ तब तक ठीक है। लेकिन एक ऐसी घड़ी आती है कि मैं तो होता ही नहीं, फिर कौन मेरे भीतर बोलता है उसके लिए मैं कैसे जिम्मेवार ?
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तो गुरु ने कहा, तू यहां से जा, नहीं तो हम फंसेंगे। क्योंकि यह बात मुसलमान देशों में तो कुफ्र की है कि कोई आदमी कह दे, 'मैं ईश्वर ।' वे तो बरदाश्त नहीं कर सकते। यह तो बात ही गलत हो गई। इस्लाम धर्म मंत्र के ऊपर नहीं बढ़ सका। मंसूर जैसे लोग उसे ले जाते तंत्र तक लेकिन नहीं ले जाने दिया। सूफी छिप-छिप कर करने लगे अपनी साधनायें क्योंकि प्रगट होकर फांसी लगने लगी। तो मंसूर दूसरे गुरु के पास गया। कुछ दिन रहा, फिर उस गुरु ने भी कहा कि भाई तू जा, क्योंकि सिलसिला बिगड़ रहा है। खलीफा तब खबर पहुंच गई है। और पुरोहित तेरे खिलाफ फतवा देनेवाला है। और तेरे साथ हम भी फंसेंगे।
तो मंसूर ने कहा, कोई जगह भी होगी ऐसी कि नहीं ? कि मैं सभी जगह भटकाया जाऊंगा? किसी ने कहा कि तू ऐसा कर एक बहुत बड़े फकीर हैं- पहुंचे हुए औलिया पीर, उनके पास चला जा । तो वह वहां चला गया। लेकिन वहां भी अड़चन आनी शुरू हो गई। गुरु ने बहुत समझाया बड़े प्रेम से समझाया कि मत बोल । इसको रखना हो तो भीतर रख, मगर इसको बोल मत, क्योंकि चारों तरफ दुश्मन हैं। उलझ जायेंगे ।
उसने कहा कि मैं कोशिश करता हूं लेकिन एक ऐसी घड़ी आती है कि मैं तो होता ही नहीं, फिर कोशिश कौन करे? ऐसा बहुत बार गुरु ने समझाया लेकिन एक दिन नहीं माना मंसूर और गुरु के सामने ही बैठा था, आंख बंद की और जोर से बोला, अनलहक! तो गुरु ने कहा, अब बहुत हो गया। तू मुझे झंझट में डाल देगा। जल्दी ही तेरे खिलाफ फतवा आयेगा । और गुरु ने कहा, देख मैं यह भविष्यवाणी करता हूं कि जल्दी ही लकड़ी का एक टुकड़ा तेरे खून से रंगा जायेगा तेरी फांसी लगेगी। तो मंसूर ने कहा, फिर मैं भी एक भविष्यवाणी करता हूं कि जिस दिन खून से मेरे लकड़ी का टुकड़ा रंगा जायेगा उस दिन तुम्हें यह सूफी का वेश उतारकर मुल्ला का वेश पहनना पड़ेगा|
लोगों ने समझा ऐसे ही मजाक में वह कह रहा है। उसका कोई भरोसा भी नहीं करता था।