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कहा, फिर क्या होगा? उसने कहा, भृंग को मीनार पर छोड़ दे। अपनी मूंछ पर शहद की गंध पाकर वह आगे बढ़ता जायेगा । वह मिलनेवाली तो है नहीं गंध, वह मिलती रहेगी। शहद मिलेगा तो नहीं, उसकी मूंछ पर है। तो वह हटता जायेगा.. हटता जायेगा । और भृंग सीधा जाता है। वह रुकता नहीं जब तक वह खोज न ले, जहां से सुगंध आ रही है। जब तक वह खोज न ले, रुकता नहीं | तू फि मत कर। वह ऊपर पहुंच जायेगा। और तेरे पति को पता है। जब एक दफा रेशम का पतला धागा पहुंच जाये तो फिर पतले धागे में थोड़ा मोटा धागा बांधना, फिर उसमें और थोड़ा मोटा बांधना। फिर पति तेरा खींचने लगेगा। फिर रस्सी बांध देना, फिर मोटे रस्से बांध देना, फिर रास्ता खुल गया।
पत्नी को बात समझ में आ गई। यह गणित बहुत सीधा है। भृंग कीड़े को पकड़ लिया, उसकी मूंछ पर मधु लगा दिया, पूंछ में पतले से पतला धागा बांध दिया। क्योंकि इतने दूर तक भृंग को जाना है, इतना लंबा धागा खींचना है तो पतले से पतला धागा था । और भृंग चल पड़ा एकदम । उसको तो गंध मिलने लगी मधु की तो वह तो पागल होकर भागने लगा। वह रुका ही नहीं। वह ऊपर पहुंच गया। और जब पति ने देखा कि भृंग कीड़ा चढ़कर आ गया है ऊपर और उसकी मूंछों पर लगे हैं मधु के बिंदु, खुश हो गया। धागे को पकड़ लिया, बस । थोड़ी ही देर में धागे से मोटी रस्सी, मोटी से और मोटी रस्सी, और मोटी रस्सी, रस्सा. निकल भागा।
यही सूत्र है परमात्मा तक जाने का। तुम्हारे भीतर जो अभी छोटा-सा रेशम का धागा जैसा है, बड़ा महीन है, पकड़ में भी नहीं आता, वह जो तुम्हारे भीतर होश है, बस उस होश को पकड़ लो। वह जो तुम्हारे भीतर चैतन्य है उसको पकड़ लो। ध्यान कुछ और नहीं, इस होश के धागे को पकड़ लेने का नाम है। फिर इसको पकड़कर तुम चल पड़ो। जिस दशा से यह आ रहा है उसी दिशा में मुक्ति है। उसी दिशा में परमात्मा है।
और यह भीतर से आ रहा है। तो तुम्हें भीतर की तरफ जाना पड़ेगा । और जैसे-जैसे तुम भीतर जाओगे, तुम अचानक पाओगे यह धारा प्रकाश की गहरी होने लगी, बड़ी होने लगी बड़ी होने लगी। छोटे में बड़ा धागा, बड़े में और बड़ा धागा, और एक दिन तुम पाओगे, आ गये प्रकाश के स्रोत पर । वही है ईश्वर। ईश्वर शब्द मात्र है, यह परम चैतन्य का दूसरा नाम है। यह तुम्हारे भीतर है। तुम पूछते हो कहां है? जो पूछ रहा है उसी में छिपा है। अन्यथा खोजा तो कभी न पा सकोगे।
और अब पूछते हो कि अगर नहीं है तो हम किसके पीछे भाग रहे हैं?
परमात्मा तो है। वही तो भाग रहा है। वही तो खोज रहा है, खोजनेवाले में छिपा है। ही, अभी तुम जिसके पीछे भाग रहे हो वह परमात्मा नहीं है। अभी तो तुम अपनी धारणाओं के पीछे भाग रहे हो। कोई मंदिर जा रहा है, कोई शंकर जी की पूजा कर रहा है, कोई रामचंद्र जी की पूजा कर रहा है, कोई गुरुद्वारा जा रहा है, कोई मस्जिद जा रहा, कोई चर्च जा रहा। यह तुम अपनी धारणाओं के पीछे भाग रहे हो। अपने भीतर चलो, वहीं असली मस्जिद, वहीं असली मंदिर है। अपने भीतर चलो। ये मंदिरों के घंटे इत्यादि बहुत बजा चुके इनसे कुछ सार नहीं है । बजाते रहो जितना बजाना हो! बहरे हो जाओगे बजाते-बजाते, कुछ भी न पाओगे। भीतर चलो।