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अल-हिल्लाज मंसूर को सूली पर लटका दिया। उसके हाथ-पैर काट डाले, उसे मार डाला। क्योंकि उसने एक ऐसी उदघोषणा की अनलहक की-कि मैं ईश्वर हूं कि मुसलमान बरदाश्त न कर सके।
एक मुसलमान फकीर अस सिमनानी ने एक गीत लिखा है। उस गीत में उसने लिखा है कि जिस दिन अल-हिल्लाज मंसूर को सूली लगी, उस रात उस गाव के एक साधु आदमी ने स्वप्न देखा। स्वप्न में उसने देखा कि अल-हिल्लाज स्वर्ग ले जाया जा रहा है। यह उसे भरोसा न आया। यह भी उस भीड़ में मौजूद था, जिसने पत्थर फेंके थे, जिसने अल-हिल्लाज को सूली देने के लिए नारे लगाये थे। इसे तो भरोसा न आया, अल-हिल्लाज और स्वर्ग ले जाया जा रहा है! तो उसने परमात्मा से पूछा-सिमनानी की कविता ऐसी है-उसने परमात्मा से कहा:
OGood! Why was a pharoh condiment to the flimes For crying out: "I am god!" And Hallaj is wrept away to heaven For crying out the same words: "I am God!" The he heard a voice speaking: When pharoh spoke those words He thought only of himself he had forgotten me. When Hallaj uttered those words_the same words He had forgotten himself He thought only for me. Therefore the 'I am in pharoh's mouth' Was a curse to him And in Hallaj's the "I am" Is the effect of my grace.
एक आदमी ने स्वप्न देखा, जिस रात मंसूर को सूली लगी, कि मंसूर स्वर्ग ले जाया जा रहा है। वह बेचैन हुआ। उसने चिल्लाकर परमात्मा से पूछा, कि फेरोह ने भी कहा था-फेरोह, इजिप्त के सम्राट-उन्होंने भी दावा किया था कि हम ईश्वर हैं। फेरोह ने भी कहा था, मैं ईश्वर हूं। लेकिन हमने तो सुना है कि फेरोह को नर्क की अग्नि में डाला गया। और फेरोह को बड़ा दंड दिया गया और बड़ा कष्ट दिया गया। और तू बड़ा नाराज हुआ था और फेरोह निंदित हुआ| और हिल्लाज ने भी वही शब्द कहे हैं कि मैं ईश्वर हूं। फिर इस हिल्लाज को क्यों स्वर्ग की तरफ ले जाया जा रहा है?
तो ईश्वर ने कहा: 'जब फेरोह ने कहा था, मैं ईश्वर हूं तो मुझे बिलकुल भूल गया था मैं