________________
नहीं चाहते। इस संसार को हमने दो हिस्सों में बांट दिया- सुख और दुख में, तो स्वर्ग और नर्क बन गये। स्वर्ग और नर्क कोई पारलौकिक बात नहीं है, इसी संसार के अनुभव हैं।
इसीलिए तो तुम नर्क में क्या पाओगे? नर्क में पाओगे कि लोग आग की लपटों में जलाये जा रहे हैं। यह हमारे जीवन का जो ताप है, लपटें हैं, उनकी ही धारणा है। स्वर्ग में क्या पाओगे? कि लोग शराब के चश्मों के पास बैठे शराब पी रहे हैं। सदा हरे रहने वाले वृक्षों के नीचे बैठे मौज कर रहे हैं, अप्सरायें नाच रही हैं। मगर यह तो यहीं का सब मामला है। यह कुछ बहुत नया नहीं है। जो यहां चलता है छोटे-मोटे परिमाण में उसको ही बड़े परिमाण में तुम वहां चला रहे हो। इसमें कुछ भेद नहीं है। यह संसार के पार बात न गई ।
तो पूरब ने एक नया शब्द खोजा, मोक्ष। मोक्ष का अर्थ है, सुख-दुख दोनों के पार । मोक्ष का अर्थ है, स्वर्ग नर्क दोनों के पार ।
लेकिन अष्टावक्र ने हद कर दी । अष्टावक्र कहते हैं, परम अवस्था में स्वर्ग-नर्क तो होते ही नहीं, मोक्ष भी नहीं होता। उन्होंने मोक्ष के पार की भी एक बात कही है। इससे पार कभी किसी ने और कुछ भी नहीं कहा है। इसीलिए तो अष्टावक्र के इन वक्तव्यों को मैंने महागीता कहा है। कृष्ण मोक्ष तक ले जाकर छोड़ देते हैं बात को । मोहम्मद स्वर्ग तक ले जाकर छोड़ देते हैं बात को । ऐसा ही जीसस भी। अष्टावक्र मोक्ष के भी पार ले जाते हैं।
अष्टावक्र कहते हैं, स्वर्ग और नर्क नहीं हैं यह तो बात ठीक। ये तो चित्त की दशायें हैं। फिर मोक्ष जो है, वह जब हम चित्त की दशाओं से मुक्त होते हैं उसका अनुभव है। लेकिन वह अनुभव तो क्षणभंगुर है।
समझो, एक आदमी जेल में बंद था बीस वर्ष, तुमने उसे मुक्त किया। जेल की दीवारों के बाहर लाये, हथकड़ियां खोल दीं, उसको उसके कपड़े वापिस लौटा दिये। वह राह पर आकर खड़ा हो गया। तो निश्चित ही राह पर आकर खड़े होकर वह परम स्वतंत्रता का अनुभव करेगा। लेकिन कितने दिन तक ? घडी -दो घड़ी, दिन-दों दिन । बीस वर्ष के कारागृह के कारण ही सड़क पर खड़ा होकर वह अनुभव कर रहा है। जो लोग सड़क पर चल ही रहे हैं और कभी जेल में नहीं गये हैं उनको कुछ भी पता नहीं चल रहा है स्वतंत्रता का ।
अगर वह आदमी एकदम नाचने लगेगा तो लोग कहेंगे, तू पागल है। वह कहेगा, मैं मुक्त हो गया। यह खुला आकाश, यह सूरज, ये चांद तारे! अहा ! तो लोग कहेंगे, तेरा दिमाग खराब है? ये सूरज चांद-तारे सब ठीक हैं, यह खुला आकाश भी ठीक है, हम सदा से यहीं हैं। ऐसा कुछ नाचने की बात नहीं है।
इस आदमी को जो अनुभव हो रहा है स्वतंत्रता का वह बीस वर्ष के कारागृह की पृष्ठभूमि हो रहा है। यह क्षण भर की बात है। दस - पांच दिन बाद जब तुम इसे मिलोगे तो तुम नाचतान पाओगे। बात खतम हो गई।
जब कारागृह ही खतम हो गया तो स्वतंत्रता भी खतम हो गई। स्वतंत्रता क्षणभंगुर है।