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से नहीं मिला, कांटो की शथ्या पर लेटकर पायेंगे, लेकिन पाकर रहेंगे। लेकिन मैं पाकर रहगा। सब छोड़ता-पकड़ता है, एक मैं को नहीं छोड़ता।
बड़ा प्रसिद्ध वचन है राबिया- अल-अदाबिया का। एक गुमराह आदमी ने राबिया से कहा कि यदि मैं धर्म के मार्ग पर लग जाऊं तो क्या ईश्वर मेरी तरफ झुकेगा, उगख होगा? 'व्हेदर गाड वुड इनक्लाइन ट्वईस मी इफ आय गेट कनवटेंड?' राबिया ने कहा, नहीं कभी नहीं।'नो, इट इज जस्ट द अपोजिट। इफ ही स्थ इनक्लाइन टुवर्ड्स यू देन यू कैन बी कनवटेंडा' इससे ठीक उलटी बात है। प्रभु तुम्हारी तरफ झुके तो तुम धर्ममार्ग में संलग्न होओगे
तुम्हारे झुकने से नहीं तुम्हारे धर्ममार्ग में प्रवृत्त होने से नहीं; तुम्हारे किये तो कुछ भी न होगा। तुम ही तो तुम्हारा सब अनकिया हो। तुम्हारा यह अहंकार ही तो तुम्हारे जीवन का कारागृह
तो पहले तुम धन इकट्ठा करते हो, फिर त्याग इकट्ठा करने लगते। संसार जोड़ते हो, फिर मोक्ष जोड्ने लगते, मगर तुम बने रहते। तुम बने ही रहते। यह जो तुम्हारा अहंकार है यह केवल मध्य में जाता है; जब न इस तरफ, न उस तरफ। उन सबको सावधान करने के लिए।
ये तो अब अंतिम सूत्र आ रहे हैं अष्टावक्र के तो उन्हें जो कहना था, धीरे- धीरे सब कह चुके हैं। अब आखिरी चेतावनियां हैं। पहली चेतावनी
'यदि अज्ञानी चित्तनिरोधादि कर्मों को छोड़ता भी है...।'
पहले तो अज्ञानी भोग ही नहीं छोड़ता। किसी तरह भोग छोड़ दे तो जिस पागलपन से भोग में लगा था उसी पागलपन से योग में लग जाता है। वही धुन! विषय तो बदल जाता है, वृत्ति नहीं बदलती। सिक्के इकट्ठे करता था तो अब पुण्य इकट्ठा करता है, मगर इकट्ठा करता है। इस जगत में सुख चाहता था, अब परलोक में सुख चाहता है, मगर सुख चाहता है। इस जगत में भयभीत होता था कि कोई मेरा सुख न छीन ले, अब परलोक में भयभीत होता है, कोई मेरा सुख न छीन ले।
भय कायम है। लोभ कायम है। पहले प्रार्थनायें करता था, प्रभु और दे-बडा साम्राज्य, और धन, और पद, और प्रतिष्ठा। अब कहता है, प्रभु, यह सब कुछ नहीं चाहिए। अब तो स्वर्ग में बुला ले। अब तो स्वर्ग का ही सुख चाहिए; मगर चाहिए अभी भी। पहले भी प्रभु का उपयोग करना चाहता था, अब भी करना चाहता है। नहीं, राबिया ठीक कहती है। अगर प्रभु तुम्हारी तरफ झुके तो तुम धार्मिक हो सकोगे। तुम्हारे धार्मिक होने से प्रभु तुम्हारी तरफ नहीं झुकेगा
पुराना वचन है इजिप्त के फकीरों का कि जब तुम गुरु को चुनते हो तो भूलकर ऐसा मत कहना कि मैंने तुझे चुना क्योंकि वहीं भूल हो गई। जब तुम गुरु को चुनते हो तो यही कहना कि धन्यवाद, कि आपने मुझे चुना।
इजिप्त के पुराने सूत्रों में एक और सूत्र है कि जब भी कोई शिष्य गुरु को चुनता है तो उसके पहले ही गुरु ने उसे चुन लिया है, अन्यथा वह गुरु की तरफ आ ही न सकता था।
मौलिक आधारभूत बात यह है कि किसी तरह से तुम्हारा अहंकार निर्मित न हो।