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वह फिर वापिस लौट गया। वही पुराने मनोरथ, वही दबी-बुझी कामनायें। वही पीछे राख में जो छिप गये थे अंगारे, फिर प्रगट हो जाते हैं। फिर आग धू-धूकर जलने लगती है। फिर पुराना धुआ उठता है। फिर पुराना प्रलाप, वह पुराना पागलपन फिर वापिस आ गया। वह कहीं गया तो नहीं था। निरोध से कभी जाता भी नहीं है। जबरदस्ती किसी तरह रोककर बैठे थे। किसी भांति बांध-बंधकर अपने को तैयार कर लिया था। यह कोई संतत्व नहीं है, सैनिक हो गये थे। कवायद सीख ली थी। अभ्यास कर लिया था। सैनिक भी कैसे शांत मूर्तिवत खड़े हुए मालूम पड़ते हैं वर्षों के अभ्यास से लेकिन तुम उनको बुद्ध मत समझ लेना| वे कोई संत नहीं हैं। भीतर आग जल रही है। खड़े हैं, भीतर ज्वालामुखी सुलग रहा है।
तुम्हारे तथाकथित साधु-मुनि, तुम्हारे महात्मा, सैनिक हैं, संत नहीं। अपने से लड़-लड़कर, किसी तरह उन्होंने सुखा-सुखाकर, अपने भीतर की वासनाओं को दबा दबाकर एक आयोजन कर लिया है, एक अनुशासन बिठा लिया है। बुरे नहीं हैं, यह बात सच है। अपराधी नहीं हैं, यह बात सच है। अगर उन्होंने कोई अपराध भी किया होगा तो अपने खिलाफ किया है, किसी और के खिलाफ नहीं किया है। लेकिन मुक्त भी नहीं हैं। संत नहीं हैं, ज्यादा से ज्यादा सज्जन हैं। दुर्जन नहीं हैं यह बात सच है। किसी के घर चोरी करने नहीं गये और किसी की हत्या नहीं की, लेकिन हत्यारा भीतर छिपा बैठा है। और चोर भी मौजूद है। और किसी भी दिन ठीक अवसर पर वर्षा हो जाये तो प्रगट हो सकता
तुमने यह खयाल किया? राह से तुम जा रहे हो, एक रुपया किनारे पर पड़ा है; तुम नहीं उठाते। तुम कहते, मैं कोई चोर थोड़े ही! फिर सोचो कि एक हजार रुपये पड़े हैं तो थोड़ा-सा ललचाते हो। पर फिर भी हिम्मत बांध लेते हो कि मैं कोई चोर थोड़े ही! लेकिन एक-दो दफे लौटकर देखते। फिर
जार पडे हैं, तब हाथ में उठा लेते हो। उठाते हो, रखते हो। कि यह मैं क्या कर रहा हं? मैं कोई चोर थोडे ही हूं! जाने की हिम्मत नहीं होती। अब छोड़कर जाने की हिम्मत नहीं होती। आसपास देखते हो, कोई देख भी तो नहीं रहा, उठा क्यों न लूं? लेकिन अगर दस लाख पड़े हैं तो फिर झिझक भी नहीं होती।
मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन एक स्त्री से बोला दोनों चढ़ रहे थे लिफ्ट में किसी मकान की-एकांत पाकर उसने कहा कि क्या विचार है? अगर एक रात मेरे साथ रुक जाये तो हजार रुपये दूंगा। उस स्त्री ने कहा, तुमने मुझे समझा क्या है? तो उसने कहा, अच्छा दो हजार ले लेना। स्त्री थोड़ी नरम पड़ी पर फिर भी नाराज थी। मुल्ला ने कहा, अच्छा तो पांच हजार ले लेना। तब बिलकुल
हो गई। मुल्ला ने कहा, पाच रुपये के संबंध में क्या खयाल है? वह स्त्री तो भनभना गई। उसने कहा, तुमने मुझे समझा क्या है? मुल्ला ने कहा, वह तो हम समझ गये कि तू कौन है। तेरी कीमत तो तूने बता दी। तू कौन है यह तो पता चल गया, अब तो मोल-भाव करना है। पांच हजार में तो तू राजी थी तो तू कौन है यह तो पता चल गया, अब मोल- भाव..! अब पांच से शुरू करते हैं।
तुम्हारी जीवन की जो सज्जनता है उसकी सीमायें हैं। संत की सज्जनता की कोई सीमा नहीं