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मगर ऐसी बात प्रेम के साथ नहीं है। प्रेम के साथ और ही अनुभव होता है। करुणा के साथ और ही अनुभव होता है। शांति के साथ और ही अनुभव होता है। ध्यान के साथ और ही अनुभव होता है। जैसे-जैसे तुम्हारा बोध बढ़ता है वैसे-वैसे शांति बढ़ती है। जैसे - जैसे तुम्हारा बोध बढता है. बोध सौ प्रतिशत तो सौ प्रतिशत प्रेम। बोध एक प्रतिशत तो एक प्रतिशत प्रेम । बोध शून्य तो प्रेम शून्य । जो बोध के साथ बढ़े वही पुण्य। जो बोध के साथ न बढ़े, घटने लगे, वही पाप ।
जो बोध के साथ न बढ़े न घटे, उससे तुम्हारा कोई संबंध नहीं। उसकी तुम चिंता ही छोड़ देना। उससे कुछ लेना-देना ही नहीं है। जो बोध के साथ न घटे न बढ़े, उससे कुछ लेना-देना नहीं है। न उसे घटाना है, न बढ़ाना है, उससे तुम्हारे जीवन का कोई लेना-देना नहीं है। उस संबंध में तुम तटस्थ हो जाना।
जैसे अगर तुम अपने शरीर को देखोगे तो न तो घटेगा, न बढ़ेगा। जैसा है वैसा रहेगा । तो शरीर से कुछ लेना-देना नहीं है। अपने आप है, अपने आप रहेगा, अपने आप चला जायेगा। तुम्हारे बोध से कुछ लेना-देना नहीं है। तुम बोधपूर्वक देखोगे सूरज को तो न घटेगा न बढ़ेगा। जैसा है वैसा रहेगा। तथ्य है, न पुण्य है, न पाप है।
पुण्य बढ़ता, पाप घटता। और जो ऊर्जा पाप के घटने से मुक्त होती है, पाप में संलग्न थी, मुक्त हुई वही ऊर्जा पुण्य में संलग्न हो जाती है। इधर घृणा घटती है, क्रोध घटता है, तो उधर करुणा और प्रेम बढ़ने लगता है। ऊर्जा तुम्हारे पास उतनी ही है उसे चाहो जहां नियोजित कर दो। गलत जगह लगा ली तो ठीक जगह लगाने को नहीं बचती है।
ज्ञानाद्गलितकर्मा।
ज्ञान से तुम्हारे कर्म गलित हों इस पर ध्यान रखना। कर्म से गलित करने की कोशिश मत करना। अन्यथा क्या होगा, जबरदस्ती क्रोध को रोक लिया तो क्रोध नष्ट तो नहीं होता, भीतर दबकर बैठ जाता है। और मजा यह कि पहले जितनी शक्ति क्रोध करने में लगती थी, अब उससे ज्यादा लगेगी। जितनी क्रोध में लगी थी वह तो क्रोध में लगी ही है, और अब उसको दबाने में जो लग रही है वह भी क्रोध में लग गई।
इसलिए ऐसा आदमी हानि में पड़ता है। ऐसे आदमी का आध्यात्मिक विकास तो नहीं होता है, हास होता है। इससे तो बेहतर है, नैसर्गिक; जब हो क्रोध, कर लेना । तुमने फर्क देखा? जो आदमी जब क्रोध होता है कर लेता है, वह आदमी तुम भला पाओगे, अच्छा आदमी पाओगे। और जो आदमी हमेशा क्रोध को रोके रखता है, उस आदमी को तुम खतरनाक पाओगे। वह किसी दिन फूटेगा । विस्फोट होगा तो छोटा-मोटा उपद्रव नहीं करेगा, कोई बडा उपद्रव करेगा। जो रोज-रोज छोटी-मोटी बातों में नाराज हो जाते हैं, फिर ठीक हो जाते हैं, ऐसे लोग बड़े अपराध नहीं करते; हत्यायें नहीं करते, न आत्महत्यायें करते हैं। ये सीधे-सादे लोग हैं। ये सामान्य नैसर्गिक लोग हैं। ये कोई आध्यात्मिक लोग नहीं हैं, मगर कम से कम स्वस्थ हैं।
तुम जरा अपने महात्माओं की आंखों में गौर से देखना, बजाय शांति के तुम एक तरह की