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एक बार तुम अपने में आ जाओ, ज्योति ही ज्योति! रस ही रस! आनंद ही आनंद!
पहली अषाढ़ की संध्या में नीलाजन बादल बरस गये उस प्रभु के नीले बादल फिर तम्हारे अंतराकाश में बरस जाते हैं।
फट गया गगन में नीलमेघ पय की गगरी ज्यों फूट गई बौछार ज्योति की बरस गई, झर गई बेल से किरन जूही
मधुमयी चांदनी फैल गई, किरनों के सागर बिखर गये तुम परमात्मा को जड़ शब्दों में मत पकड़ो, जड़ सिद्धांतों में मत पकड़ो। यह तुम्हारे ही भीतर की छिपी संभावना है। ऐसे प्रश्न मत पूछो। यह पूछने की बात ही नहीं है। इस तरह पूछने में ही भूल है। इसी तरह पूछने के कारण तुम्हें गलत उत्तर मिले हैं। कोई मिल गया, जिसने कहा कि वहां है।
पहले हिमालय पर हुआ करता था परमहमा क्योंकि हिमालय पर चढ़ना मुश्किल था। फिर आदमी वह। चढ़ गया। फिर उसको वहां से हटाना पड़ा। फिर चांद पर बिठा दिया। अब आदमी वहां चढ़ गया, अब वहां से हटाना पड़ा। जहां आदमी पहुंच जाये वहीं से हटाना पड़ता है। यह झूठी बकवास है। परमात्मा बाहर नहीं है।
और एक तो हैं जो कहते हैं वहां है। और फिर जब वहां नहीं पाते तो दूसरा वर्ग है जो कहता है, कहां है बोलो! पहले ही कहा था कि नहीं है। ऐसे आस्तिक और नास्तिक लड़ते हैं।
जब यूरी गागरिन पहली दफा लौटा चांद का चक्कर लगाकर तो जो बात उसने पहली रूस के टेलीविजन पर कही वह यह, कि मैं देख आया चक्कर लगाकर; वहां कोई ईश्वर नहीं है। और उन्होंने एक बड़ा म्मुजियम बनाया है मास्को में, जिसमें सारी अंतरिक्ष की यात्रा की चीजें इकट्ठी की हैं-साधन, यंत्र, उस पर यह वचन म्मुजियम के प्रथम द्वार पर लिखकर टांगा है यूरी गागरिन का, कि मैं देख आया आकाश में, घम आया चांद तक, वहां कोई ईश्वर नहीं है। इससे सिद्ध होता है कि ईश्वर नहीं
एक तो मूढ़ आस्तिक हैं जो कहते हैं, वहां। फिर मूढ़ नास्तिक हैं जो कहते हैं, वहां नहीं। वे दोनों एक जैसे हैं। मैं तुमसे कहता हूं,वह न तो बाहर है, न बाहर नहीं है, वह तुम्हारे भीतर बैठा है। यूरी गागरिन को जानना हो तो चांद-तारों पर चक्कर लगाने की जरूरत नहीं, अपने अंतराकाश में उतरने की जरूरत है।
वहां नहीं खोजता आदमी और सब जगह खोजता है। लेकिन उसको भी मैं कसूर नहीं दूंगा। क्योंकि जो करोड़ आदमी कुंभ मेला में इकट्ठे हुए हैं ये यूरी गागरिन से भिन्न थोड़े ही हैं ये भी बाहर खोज रहे हैं। वे जो करोड़ों यात्री हज की यात्रा पर जाते हैं मक्का-मदीना, वे भी बाहर खोज रहे हैं। यूरी गागरिन से भिन्न थोड़े ही इनका तर्क है! वे जो गिरनार जाते हैं, शिखरजी जाते हैं, इनका तर्क कोई भिन्न थोड़े ही है! ये भी बाहर खोज रहे हैं।
तुम जो पूछते हो, ईश्वर कहां है? तुमने गलत प्रश्न पूछ लिया। इस प्रश्न के दो गलत उत्तर हैं एक कि कहीं भी नहीं है, और एक कि वहां रहा। ये दोनों गलत उत्तर हैं। मैं तुमसे कहता हूं खोजनेवाले