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में छिपा है। मत पूछो कि ईश्वर क्या है? इतना ही पूछो कि मैं कौन हूं। जिस दिन तुम जान लोगे कि मैं कौन हूं उसी दिन तुमने परमात्मा को भी जान लिया है। उसके पहले किसी ने कभी नहीं जाना है।
पांचवां प्रश्न :
संत कबीर आर्थिक रूप से बहुत संपन्न न थे लेकिन जब अनेक लोग प्रतिदिन उनके घर सत्संग व भजन के लिए इकट्ठे होते थे तो वे उन्हें भोजन का आमंत्रण अवश्य देते थे। पत्नी व बेटे कमाल की बड़ी कठिनाई थी । आखिर एक दिन कमाल ने उन्हें चेताया; कहा, अब तो चोरी करने के अलावा कोई चारा नहीं। कबीर बड़े प्रसन्न हुए। कहा, अरे! यह सुझाव तूने इतने दिन तक क्यों न दिया? फिर कबीर और कमाल चोरी करने भी गये। सेंध मारी, गेहूं के बोरे खिसकाया कबीर ने कहा, कमाल, घर के लोगों को जगाकर खबर कर दे कि हम गेहूं ले जा रहे हैं।
इस प्रकार यह कथा आगे चलती है। कबीर के लिए अपने-पराये का भेद न रह गया था, सब परमात्मा का था। भगवान, कृपया बतायें कि कबीर के स्थान पर आप होते तो क्या करते?
इतनी ही तरमीम करता, इतना ही फर्क करता कि कमाल को कहता, आहिस्ता- आहिस्ता निकलना, घर के लोग जाग न जायें। क्योंकि एक तो उनका गेहूं ले चले और बेचारों की नींद भी खराब करो! शांति से सो रहे हैं, कम से कम सोने तो दो !
इतना फर्क और कुछ ज्यादा फर्क न करता ।
छठवां प्रश्न :
संसार की चिंता मुझे सताती है।
लोग अति दुखी हैं। मैं उनके लिए क्या कर
सकता हूं? शास्त्रों में भी बहुत खोजता हूं पर
कहीं कोई मार्ग नहीं सूझता ।
शास्त्रों में किसको कब मार्ग मिला? खोना हो मिला मिलाया मार्ग तो शास्त्रों में खोजो।