________________
क्षीण हुई. क्षीण हुई सो गई। तुम जागे रह गये। तुम जागे रह गये और वाणी सो गई, तभी तुम्हारे भीतर जो इलहाम होता है, जो तुम्हारे भीतर उदघोष होता है, वह परमात्मा का उदघोष है, वह तांत्रिक।
ये तीन तल हैं।
और तुमने पूछा है कि इसमें जीवन का परम स्वीकार किस भांति समाहित है? इस भांति समाहित है देह, यंत्र में तो सिर्फ दैहिक है।
मन, मंत्र में सिर्फ मांत्रिक नहीं है, दैहिक भी समाहित है। क्योंकि मंत्र तुम्हें बोलना हो तो देह के सहारे की जरूरत है। दैहिक में तो केवल दैहिक है। मांत्रिक में देह और मन दोनों हैं। खयाल रखना क्षुद्र में विराट नहीं समाता, विराट में क्षुद्र समा जाता है। मन देह से बड़ा है। देह उसमें समा गई। मांत्रिक का अर्थ है-देहस्मन। दोनों उसमें हैं। और देह और सुंदर होकर आ गई, क्योंकि अब उसकी यंत्रवत्ता चली गई। अब देह में भी प्रसाद आया। अब देह भी जीवंत हुई।
और तांत्रिक में, आत्मा में आत्मा का अर्थ इतना ही नहीं होता कि तुम सिर्फ आत्मा हो। वह तो फिर तुम भूत-प्रेत हो गये। आत्मा का अर्थ होता है, उसमें मन समाहित है, उसमें देह भी समाहित है। त्रिवेणी पूरी हो गई
मन पर गंगा और यमुना तो हैं, सरस्वती नहीं है। सरस्वती अभी दिखाई नहीं पड़ रही है।
जब तुम आत्मा पर पहुंचे तंत्र पर पहुंचे तो सरस्वती भी प्रगट हुई। अदृश्य भी दृश्य हुआ। अगोचर गोचर हुआ
आत्मा का अर्थ होता है, मन और शरीर दोनों समाहित हो गये, और भी श्रेष्ठतर पैदा हो गया। इसलिए मैं कहता हूं कि तंत्र में सब समाहित है। तंत्र में सर्व स्वीकार है -मन का भी, देह का भी। जैसे मांत्रिकता देह को शुद्ध कर देती है, वैसे तांत्रिकता मन को भी शुद्ध कर देती है, और शुद्धि की एक वर्षा हो जाती है। एक परम निर्मलता, एक परम निर्दोष भाव उत्पन्न होता है। सब शुद्ध हो जाता है।
ऐसी साधना क्या, जो सिर्फ आत्मा को ही शुद्ध करे? साधना तो वही, जो सर्व को शुद्ध कर जाये, जो क्षुद्र को भी विराट कर जाये, जहां पत्थर भी, पाषाण भी परमात्मा हो जाये, वही साधना।
चौथा प्रश्न :
भगवान क्या हैं? और अगर हैं तो कहाँ है? और अगर नही हैं तो हम किसके पीछे भाग रहे हैं?