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तुम
अपनी प्रत्येक क्रिया को यात्रिक से तांत्रिक तक पहुंचाना। मंत्र बीच का द्वार है। इसलिए मंत्रों का इतना उपयोग धर्मों में हुआ है। वह तो प्रतीकात्मक है। अगर तुम पूरी बात को समझो तो मंत्र सेतु है। मंत्र का मतलब केवल इतना ही नहीं होता कि तुम बैठे राम-राम-राम दोहरा रहे हो तो मंत्र हो गया। वह बड़ा छोटा अर्थ है, बड़ा एक आशिक अर्थ है। जो मैं तुमसे कह रहा यह अर्थ है मांत्रिक का कि तुम मन से जीने लगे। तुम्हारा जीवन मनपूर्वक हो गया। तुम्हारे जीवन में मनन उतरा तो तुम मांत्रिक।
तो
यह राम-राम दोहराने से कुछ न होगा। क्योंकि फिर फर्क समझ लेना; एक आदमी बैठा-बैठा राम-राम दोहरा सकता हो और यांत्रिक हो, मांत्रिक बिलकुल न हो । दोहरा रहा है तोते की तरह। तोते को तुम रटवा दो राम-राम-राम-राम, तोता दोहराता रहता है। अनेक इसी तरह के तोते रामनाम की चदरिया ओढ़े बैठे हैं। अभी तुम जाओ तो कुंभ में मिल जायेंगे तुमको सब तोते इस मुल्क के। वे बैठे दोहरा रहे हैं, राम-राम-राम-राम । कुछ मतलब नहीं है, लेकिन इतने दिन से दोहरा रहे हैं कि अब यह दोहराना उनकी आदत हो गई है। इस दोहराने से कुछ फर्क नहीं पड़ता । भीतर और सब विचार चल रहे हैं और ये ऊपर-ऊपर राम-राम-राम-राम दोहरा रहे हैं। और भीतर सब चल रहा है। पूरा व्यवसाय चल रहा है, पूरी दूकान चल रही है, पूरा बाजार चल रहा है, सब चल रहा है।
बचपन में मेरे घर के सामने एक मिठाईवाले की दूकान थी। मिठाईवाला था, जैसे मिठाईवाले होने चाहिए वैसा था। काफी बड़ा पेट! उठ भी नहीं सकता था ज्यादा, तो ज्यादा काम का भी नहीं था। वह अपना मंच पर ही बैठा रहता, वहीं से मिठाई तौलता रहता । खाली वक्त में जब कुछ न होता, तो वह माला फेरता रहता. 'राम-राम-राम-राम | '
मैं बड़ा हैरान होता था। बचपन से ही उसको मैं देखता रहता सामने ही। ऐसा राम-राम भी करता रहता, ग्राहक आता तो उसको इशारे भी कर देता, पांच उंगली बता देता । जो नौकर काम कर रहा है दूकान पर उसको बता देता कि जोर से चला, आग बुझी जा रही है। और इधर राम-राम चल रहा है। इसमें कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा है।
वह राम-राम तो बिलकुल यंत्रवत है। उससे कुछ लेना-देना नहीं है।
फिर एक मांत्रिक होती अवस्था, जब तुम बड़े भाव से राम कोई ऐसा शब्द थोड़े ही है कि उच्चार दिया, कि हर कहीं कह दिया, कि हर किसी से कह दिया, कि हर किसी ढंग से कह दिया! किसी बड़े विशिष्ट क्षण में, पवित्र क्षण में, ठीक आयोजनपूर्वक, धूप-दीप बालकर, स्नान करके शरीर का ही नहीं, मन का भी थोडी देर के लिए स्नान करके तुम बैठे। उस पूत क्षण में, उस पावन क्षण में तुमने प्रभु स्मरण किया। चाहे राम-राम कहा या नहीं कहा, यह कोई सवाल नहीं है। प्रभु का स्मरण किया, उसकी याद से भरे मनःपूर्वक तो मंत्र हुआ
लेकिन यह भी कोई आखिरी बात नहीं है। क्योंकि मन ही आखिरी बात नहीं तो मंत्र कैसे आखिरी बात होगी? फिर तंत्र है। वह आखिरी उड़ान है। वहां तुम डूब गये, अलग भी न रहे अब। याद भी कौन करे? याद किसकी करे? उसी घडी में तो मंसूर ने कहा, उनलहक! मैं स्वयं परमात्मा हूं। मुसलमान