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ज्ञान का स्वभाव सदा सभी से निर्लेप ही रहा है। क्रिया में भी ज्ञान एकाकार नहीं होता।
ज्ञान लेने वाला कौन है ? जो भटक गया है, वह। जो भोगता है, वह। खुद परमात्मा ही हैं लेकिन कहता क्या है, 'मैं दु:खी हूँ। बहुत चिंता होती है। मुझे कषाय हो जाते हैं'। यह तो सिर्फ भूत घुस गया है। जैसे रात को कुछ खड़खड़ाया तो वहम हो जाता है कि भूत है। पूरी रात घबराता रहता है, सुबह उठकर देखें तो वहाँ चूहा होता है! वैसा ही हुआ है यह सब! सही राहबर, ज्ञानी मिल जाएँ तो इस भूत को निकाल देते हैं और निर्भय और वीतराग बना देते हैं!
'खुद' खुद के अज्ञान द्वारा बंधता है और 'खुद' खुद के ज्ञान द्वारा मुक्त होता है। आत्मा तो ज्ञान वाला है ही।
ज्ञान मिलने पर ज्ञानी कौन बनता है? बंधन में आया हुआ वह, जो 'मैं और मेरा' कहता है।
ज्ञानी ज्ञान देते हैं तब अशुद्ध चेतन यानी कि पावर चेतन शुद्ध हो जाता है। यह पावर किसे रहता है ? अहंकार को।
आत्मा के केवलज्ञान स्वरूप होने के बावजूद भी गलती कहाँ पर हो गई? गलती की ही नहीं है। यह तो विज्ञान से अहंकार उत्पन्न हो गया और विज्ञान से ही जाएगा। अहंकार को विलय कैसे किया जा सकता है? अक्रम ज्ञान से दो ही घंटों में यहाँ पर विलय हो जाता है! कई लोगों के अहंकार विलय हो गए!
अज्ञान का प्रेरणा बल कौन है ? संयोग।
ज्ञान का प्रेरणा बल कौन है ? संयोग। ओन्ली साइन्टिफक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स।
जगत् किसमें से उत्पन्न हुआ है? अज्ञान में से। अर्थात् विभाविक आत्मा प्रतिष्ठित आत्मा में से उत्पन्न हुआ है फिर उसी में लय हो जाता है और वापस उसी में से उत्पन्न होता है। इस तरह चलता रहता है... इससे मूल आत्मा को कोई लेना-देना नहीं है। सिर्फ आत्मा की विभाविक दृष्टि उत्पन्न हो गई है इसलिए बिलीफ बदल गई है। ज्ञान या चारित्र कुछ
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