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अब साफ किस तरह से करना है ? भाव बिगाड़कर उन्हें बिगाड़ा अब समभाव से निकाल करके साफ करो या फिर प्रतिक्रमण करके धो दो तो आप मुक्त और वे भी मुक्त।
हमें अपना ज्ञायक स्वभाव नहीं छोड़ना है। जो भी विचार आएँ उन्हें देखना है तो वे साफ होकर चले जाएंगे।
अज्ञान मान्यता क्या कहती है कि मेरा आत्मा पापी है। ऐसा नहीं मानता कि पुद्गल अशुद्ध है।
दादा हर रोज़ नए-नए ज्ञानरत्न देते ही जाते हैं। दादा कहते हैं, 'हमारी इच्छा ऐसी है कि किसी ने हमारे लिए कुछ भी किया हो, हमें किसी ने चाय भी पिलाई हो तो उसे लाभ हो'। करुणा की ऐसी चरम सीमा!
[4] ज्ञान-अज्ञान ज्ञान-अज्ञान के बीच क्या भेद है? अज्ञान भी एक प्रकार का ज्ञान है, प्रकाश ही है लेकिन वह प्रकाश पराई चीज़ों को, विनाशी चीज़ों को दिखाता है। जबकि ज्ञान खुद को व औरों को भी प्रकाशित करने वाली चीज़ है। अज्ञान, यह नहीं जानने देता कि 'मैं कौन हूँ।
यह जो प्राकृत ज्ञान, पौद्गलिक ज्ञान है, वह अज्ञान है। फिर भी वह एक प्रकार का ज्ञान है लेकिन आत्मा के ज्ञान की तुलना में उसे अज्ञान कहा गया है।
संसार चलाने के लिए बुद्धि की ज़रूरत है, उसे अज्ञान कहा है।
आत्मा खुद ही ज्ञान स्वरूप है। ज्ञान कभी भी अज्ञान नहीं हो जाता। आवरण आने पर उसमें से विशेष ज्ञान उत्पन्न होता है लेकिन वह भी ज्ञान ही है।
अंधेरे की चाहे कितनी भी स्लाइस (भाग) की जाएँ तो उसमें से अंधेरा ही निकलता है, क्या उजाला निकल सकता है?
ज्ञान हमेशा सुख ही देता है, अज्ञान दुःख देता है।
आत्मा का ज्ञान प्रकाश ऐसा है कि (उसमें) कभी भी अंधेरा नहीं हो सकता, उसकी कभी परछाई भी नहीं पड़ती।
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